पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/३५३

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दूसरा खण्ड] परिणाम ३२१ पर गिर पड़े। कुन्ती भी प्यारे पुत्र को पाकर गद्गद हो गई। उनकी आँखों से आँसू बहने लगे। सहदेव को उठा कर वे गान्धारी से बोली :- आये ! सहदेव पाये हैं। इसके बाद जब उन्होंने अपने और पुत्रों को भी देखा उब धृतराष्ट्र और गान्धारी को साथ लेकर जल्दी जल्दी उनसे मिलने के लिए चलीं। इधर उन लोगों ने भी जल्दी से आगे बढ़ कर माता के पैर छवे । धृतराष्ट्र ने बोली से और हाथ से छूकर पाण्डवों को पहचाना और कुशल-समाचार पूछा। पाण्डवों ने आँसू गिराते हुए जब धृतराष्ट्र, गान्धारी और कुन्ती के जल से भरे हुए घड़े ले लिए तब कुल की स्त्रियाँ और नगर-निवासी चारों तरफ खड़े होकर धृतराष्ट्र को एकटक देखने लगे। युधिष्ठिर ने नाम और गोत्र बता कर धृतराष्ट्र से आये हुए सब लोगों का परिचय कराया। इसके बाद धृतराष्ट्र ने एक एक करके सबसे कुशल पूछ कर युधिष्ठिर से कहा :- ___पुत्र ! तुम भाइयों और पुरवासियों समेत कुशल से रहते हो न ? तुम्हारी आश्रित प्रजा, मन्त्री, नौकर और गुरु लोगों का तो कोई अमङ्गल नहीं हुआ ? वे लोग बेखटके तुम्हारे राज्य में रहते हैं न ? नीतिनिपुण धृतराष्ट्र की ये बातें सुनकर धर्मात्मा युधिष्ठिर ने कहा :- महाराज ! आपकी कृपा से हमारे राज्य में सब कहीं मंगल है । आपकी तपस्या दिन पर दिन बढ़ती जाती है न ? हमारी माता कुन्ती आपकी शुश्रूषा करके वनवास का क्लेश सफल करती हैं न ? इस समय महात्मा विदुर कहाँ हैं ? उनको देखने के लिए हम बड़े व्याकुल हैं। धृतराष्ट्र ने उत्तर दिया :- बेटा ! तुम्हारे चचा महा बुद्धिमान् विदुर बड़ी कठिन तपस्या कर रहे हैं। वे कुछ खाते- पीते नहीं; इसलिए उनके शरीर में सिर्फ हड्डी और चमड़ा ही रह गया है। वे इस वन में एक ऐसी जगह रहते हैं जहाँ मनुष्यों का आवागमन बहुत ही कम है। कभी कभी ब्राह्मण लोग वहाँ जाकर उनके दर्शन कर आते हैं। धृतराष्ट्र यह बात कह ही रहे थे कि धूल लपेटे, जटाधारी, नंगे बदन महात्मा विदुर उस आश्रम के एक कोने में दिखाई पड़े। पर आश्रम देख कर ही वे सहसा वहाँ से चल दिये। इस पर युधिष्ठिर अकेले उनके पीछे पीछे दौड़े। तब धीरे धीरे विदुर घने वन में घुस गये। हे महात्मा ! हम आपके प्यारे युधिष्ठिर हैं । आपसे मिलने के लिए आये हैं :- ___ यह कह कर युधिष्ठिर बड़ी तेजी से उनके पीछे दौड़ने लगे। तब विदुर उस घने जंगल में एक पेड़ के नीचे एकदम से ठहर गये। वहाँ पहुँच कर युधिष्ठिर कुछ कहने ही वाले थे कि उन्होंने देखा विदुर की आँखें निश्चल हैं; उनके शरीर में प्राण नहीं हैं। उनकी देह पेड़ के सहारे खड़ी ____यह जानकर कि विदुर ने देह त्याग दी युधिष्ठिर लौट आये और धृतराष्ट्र से सब हाल कह सुनाया। यह आश्चर्यजनक बात सुन कर सब लोग बड़े विस्मित हुए। पर यह सोच कर कि विदुर ने यतियों की गति प्राप्त की है न तो किसी ने उनके लिए शोक किया न उनकी देह जलाने ही की किसी ने चेष्टा की। तब धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर से कहा :- बेटा ! तुम्हारा मंगल हो। तुम्हारे अनुग्रह से हमारे सब शोक-संताप दूर हो गये हैं। इस फा०४१