पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/३५६

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३२४ । सचित्र महाभारत [दूसरा खण्ड क्रिया करके सब लोग लौट आये और नगर के बाहर ठहरे । बारह दिन तक यथाविधि श्राद्ध करने के बाद भाइयों और अन्य लोगों के साथ युधिष्ठिर फिर नगर में आये और दुखी मन से राज-काज चलाते रहे। कुरुक्षेत्र का घोर मनुष्य-नाश, अन्धराज धृतराष्ट्र के मन की दुर्बलता ही के कारण हुआ था। उसके बाद धृतराष्ट्र ने पन्द्रह वर्ष नगर-निवास और तीन वर्ष वनवास किया। तदनन्तर, जैसा वर्णन किया गया, उन्होंने सदा के लिए शान्ति-लाभ किया। ११-यदुवंश-नाश __पाण्डवों के पास से कृष्ण के अपने राज्य में लौट आने पर शापभ्रष्ट भोज, वृष्णि, अन्धक आदि यादव-वंश के वीरों के चरित्र अधिक मद्यपान आदि दोषों से धीरे धीरे बिगड़ने लगे। इसी समय एक दिन महर्षि विश्वामित्र, मुनिवर कण्व, और तपस्वी नारद द्वारका को गये। यादवों की बुद्धि तो ठिकाने थी ही नहीं। इससे सारण आदि युवा यादवों को दिल्लगी की सूझी । कृष्ण के पुत्र शाम्ब को स्त्री-वेश में ऋषियों के सामने ले जाकर वे बोले :- हे महर्षिगण ! यह महा-पराक्रमी बभ्र की स्त्री है । महात्मा बभ्र पुत्र पाने की बड़ी इच्छा रखते हैं । इसलिए शास्त्र देख कर यह बतलाइए कि इसके क्या होगा-पुत्र या कन्या ? महा बुद्धिमान् ऋषि लोग समझ गये कि ये हमसे दिल्लगी करते हैं। इसलिए क्रोध में आकर उन्होंने उत्तर दिया :- रे नीच यादवो ! कृष्ण का यह पुत्र तुम लोगों का नाश करने के लिए एक महा विकट मूसल उत्पन्न करेगा। क्रोध से भरे हुए उन मुनियों के चले जाने पर कृष्ण को जब इस दुर्घटना का हाल मालूम हुआ तब उन्होंने यादवों से सलाह करके द्वारकापुरी में मद्य बनाने का काम एकदम बन्द करवा दिया और मनादी करा दी कि जो कोई इस आज्ञा को न मानेगा उसे तरह तरह के कठोर दण्ड दिये जायेंगे। नगर-निवासियों ने यह आज्ञा मान ली और शराब बनाना छोड़ दिया। किन्तु इतनी सावधानी करने पर भी वृष्णि और अन्धक लोगों के पीछे पीछे काल घूमने लगा। उनका नाश समीप आया मालूम होने लगा। नगर में प्रति दिन तरह तरह के अशकुन होने लगे । सब लोगों ने लज्जा और भय छोड़ दिया । बड़ों की बातें लोग न मानने लगे। एक दिन त्रयोदशी से अमावास्या का संयोग हुअा। चतुर्दशी का क्षय हो गया। यह देख कर महात्मा कृष्ण ने कहा :- हे वीरगण ! कुरुक्षेत्र का युद्ध होने के समय जैसे अशकुन हुए थे वैसे ही अब भी होते हैं। इसलिए इस समय हम लोगों को तीर्थयात्रा करनी चाहिए। वृष्णि और अन्धक लोगों ने प्रसन्न-मन से यह बात मान ली । तरह तरह की खाने-पीने की सामग्री इकट्ठा करके बड़े आडम्बर से वे लोग प्रभासतीर्थ को चले । वहाँ वे अच्छे अच्छे मनमाने घरों में उतरे और स्त्रियों के साथ आनन्द करने लगे। नटों, नाचनेवालों और मद्य से मतवाले आदमियों से