पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/५०

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चित्र महाभारत [पहला खण्ड किया जायगा। हमारे आँखें नहीं है, इससे आज हमें बड़ा कष्ट हो रहा है। कुछ भी हो, परीक्षा का वृत्तान्त सुन कर ही हम सन्तुष्ट होंगे । उसे सुनने के लिए हम बहुत उत्सुक हो रहे हैं। ___ यह कह कर सामने बैठे हुए विदुर से धृतराष्ट्र बोले : हं धार्मिक-शिरोमणि ! आचार्य द्रोण ने हम लोगों पर बड़ा ही उपकार किया है। अस्त्र-विद्या में राजकुमारों की परीक्षा के लिए, आचार्य की जैसी आज्ञा हो उसके अनुसार इस समय रङ्गभूमि की ग्चना की जाय। विदुर ने महाराज धृतराष्ट्र की आज्ञा सिर पर रक्खी। द्रोण के कहने के अनुसार रङ्गभूमि बनाने का काम बहुत जल्द आरम्भ किया गया। एक लम्बा चौड़ा साफ मैदान इस काम के लिए ठीक किया गया। इस जगह झाड़ियाँ, लतायें, पड़ आदि कुछ न थे। जो थे भी उन्हें काट कर सब जगह चौरस कर दी गई। चारों तरफ़ उसकी हदबन्दी की गई। बड़े बड़े कारीगर काम पर लगा दिये गये। दर्शकों के बैठने के लिए उन्होंने एक तरफ एक विशाल मण्डप बनाया । बीच में स्त्रियों के बैठने और तमाशा देखने के लिए उन्होंने अच्छे अच्छे रमणीय स्थान तैयार किये । पुरवासियों ने भी अपनी अपनी शक्ति के अनुसार चारों तरफ़ ऊँचे ऊँचे मचान और तम्बू खड़े किये और उनको खूब सजाया । __इस तरह तैयारियाँ करत करत परीक्षा का दिन आ पहुँचा। कृपाचार्य और भीष्म का आगे करके मंत्रियों के साथ महाराज धृतराष्ट्र रङ्गभूमि को चले । उनके लिए एक बड़ा ही मनोहर स्थान बनाया गया था। वह सोने का था और अनमोल मोतियों और मणियों से सजाया गया था। उसी में धृतराष्ट्र ने प्रवेश किया। गान्धारी, कुन्ती और दूसरी राज-स्त्रियाँ, बड़े बड़े मोल के वस्त्र और आभूषण धारण करके, दासियों से घिरी हुई. अपने अपने बैठने की जगह जा विराजी । राजधानी में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र चारों वर्गों के लोग राजकुमारों की अस्त्र-परीक्षा देखने के लिए आने लगे। धीरे धीरे रङ्गभूमि भर गई। कहीं तिल धरने को जगह न रही। दर्शकों का कोलाहल बेतरह बढ़ा । मालूम होने लगा, मानो तूफ़ान आने के कारण महासागर की लहरों का हाहाकार हो रहा है। परीक्षा का समय निकट आजाने पर, बाजेवाला ने कोमल स्वर में धीरे धीरे बाजा बजाना आरम्भ किया । बाजे का शब्द सुन कर दर्शकों का कौतूहल बढ़ने लगा। इसी समय अपने पुत्र अश्वत्थामा के साथ आचार्य द्रोण ने रङ्गभूमि में प्रवेश किया। उनके सिर और डाढ़ी के बाल सब मफेद थे। कपड़े भी वे सफ़ेद ही पहने थे। उनके शरीर पर चन्दन का जो खोर था वह भी सफ़ेद ही था। उनके मुँह से तेज टपक रहा था। द्रोणाचार्य ने आकर पुरोहित से कहा, अब क्या देरी है। मङ्गल-कार्य आरम्भ होना चाहिए। उनकी आज्ञा से पुरोहित ने विधिपूर्वक मङ्गल-क्रिया की । माङ्गलिक अनुष्ठान हो चुकने पर नौकर-चाकरों ने अस्त्र-शस्त्र लाकर अपनी अपनी जगह रक्खे । इसके अनन्तर राजकुमारों ने अपनी अपनी अँगुलियों में अँगुलीत्र वाँधे, जिसमें अँगुलियों की रक्षा हा, शस्त्रों की रगड़ आदि से उनमें चोट न आवे । अपने अपने तरकसां में ठाँस ठाँस कर तीर भरे। जबूती से कसीं। तैयार होकर युधिष्ठिर को उन्होंने आगे किया। जो जिससे छोटा था वह क्रम क्रम से उसके पीछे हुआ । इस तरह हाथ में धनुष लिये हुए वे रङ्गस्थल में आये। पहले राजकुमारों ने अनेक प्रकार के अस्त्र चला कर अपने अपने हाथ की चालाकी दिखाई। चारों तरफ़ अस्त्र ही अस्त्र देख पड़ने लगे। यह दशा देख कर कितने ही दर्शक यहाँ तक डर गये कि उन्होंने ऊपर देखना बन्द कर दिया। उन्होंने अपना अपना सिर नीचे कर लिया। अस्त्र चलाने में अर्जुन की अद्भुत शक्ति देख सब लोगों का ध्यान उनकी तरफ खिंचने लगा। ___इसके पीछे राजकुमार तेज़ घोड़े पर सवार हुए । घोड़े के पीठ से ही कभी वे अपने नाम लिखे हुए तीरों से स्थिर निशाने उड़ाने लगे। और कभी धनुर्षाण से हिलते हुए निशानों को पृथ्वी पर गिराने लगे। यह देख लोग उनकी बार बार प्रशंसा करने लगे।