पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/५१

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पहला खण्ड ] ___ पाण्डवों और धृतराष्ट्र के पुत्रों का बालपन फिर वे लोग रथों पर सवार हुए और एक गोलाकार जगह में बार बार चक्कर लगा कर रथ चलाने और घोड़ों को वश में रखने में अपनी अपनी चालाकी दिखाने लगे। रथों की सवारी छोड़ कर राजकुमारों ने तलवारें लीं। कोई घोड़े पर सवार हुआ, कोई हाथी पर । परस्पर द्वंद्व-युद्र होने लगा। ऊपर आकाश में इधर उधर सब तरफ़ चमचमाती हुई तलवारों की किरणों से चारों दिशायें प्रकाशित हो उठीं । उस समय की शाभा देखते ही बनती थी । उसका वर्णन नहीं हो सकता । देखनेवालों को इस दृश्य से बड़ा विस्मय और बड़ा आश्चर्य हुआ । सबने दाँतों के नीचे उँगली दबाई । सबने एकवाक्य से राजकुमारों की प्रशंमा की। फिर गदायुद्र होने लगा। भीम और दुर्योधन सामने सामने आये और मैदान में मण्डलाकार घूमने लगे। प्रत्येक वीर दूसरे को बाई तरफ़ करके युद्ध करने लगा । गदायुद्ध में दोनों बराबर थे। चढ़ाऊपरी करके अपने जोड़ीदार को हराने की दोनों चेष्टा करने लगे। यह देख सारे दर्शकों की आँखें उन्हीं की तरफ़ खिंच गई । दर्शकों के दो दल हो गये । एक दल भीम की तरफ़ हुआ, दूसरा दुर्योधन की । कोई 'हाँ दुर्योधन' कह कह कर, कोई हाँ भीम' कह कर अपने अपने पक्ष के वीर को बढ़ावा देने लगा। इन बढ़ावे चढ़ावे की बोलियों से बड़ा कोलाहल मच गया। द्रोण डरे कि कहीं ऐसा न हो जो वोरता के जोश में इन दोनों योद्धाओं का खून हद से अधिक खौल उठे और परिणाम भयङ्कर हो। इससे उन्होंने भीम और दुयोधन का गदायुद्र बन्द कराने के लिए अश्वत्थामा को युद्र के मैदान में भेजा। अश्वत्थामा के समझाने से भीम और दुर्योधन ने युद्र बन्द किया और अपनी अपनी गढ़ायें रख दी। युद्ध के मैदान में जो जो बातें होती थीं, विदुर अच्छी तरह धृतराष्ट्र को समझा देते थे। उधर कुन्ती भी महारानी गान्धारी से सब बातें कहती जाती थी। इसके अनन्तर बाजा बन्द करा कर द्रोण रङ्गस्थल में आये और बोले :-- हे दर्शक-वृन्द ! हमारे शिष्यों की विद्या और युद्ध करने की यो यता आपने अच्छी तरह देख ली। अपने शिष्यों में हम अर्जुन ही को श्रेष्ठ समझते हैं। इसमे अब आप लोग अर्जुन का अच्छी तरह दर्शन करें। तब आचार्य की आज्ञा से अर्जुन रङ्गभूमि के मैदान में आये। उन्होंने अँगलियों पर गोह के चमड़े के दस्ताने चढ़ाये, बदन पर सोने का कवच धारण किया, और हाथ में धनुर्बाण लिया। इस प्रकार जब वे अकेले रङ्गभूमि में फुर्ती से आकर खड़े हुए तब उन्हें देख दर्शकों ने बड़ा कोलाहल मचाया। शंखध्वनि होने लगी। फिर बाजे बजने लगे। ये श्रीमान् कुन्ती-नन्दन हैं ! ये तीसरे पाण्डव हैं ! ये देवताओं के राजा इन्द्र के पुत्र हैं ! अस्त्रविद्या के के जाननेवालों में ये श्रेष्ठ है ! यही अपने वंश के रक्षक होंगे। इस तरह की प्रशंसापूर्ण बातें चारों तरफ़ सुन पड़ने लगीं। पुत्र की ऐमी प्रशंसा सुन कर कुत्ती के आनन्द की मीमा न रही। वह बहुत ही प्रसन्न हुई। जब सब लोग अर्जुन को अच्छी तरह देख चुके तब वे अपनी विद्या की परीक्षा देने लगे। पहले उन्होंने आग्नेय नाम के अस्त्र से आग पैदा की । फिर उस आग को वरुणास्त्र नाम के अस्त्र से बुझा दिया। अनन्तर वायव्य नामक अस्त्र से प्रचण्ड आँधी चलाकर पार्जन्य नामक अस्त्र से आकाश में मेघों के दल के दल पैदा कर दिये । भौमास्त्र से उन्होंने पृथ्वी को फाड़ दिया और पर्वतास्त्र से पर्वत उखाड़ लिये । अन्त में अन्तर्द्वान अस्त्र के द्वारा उन सबको अन्तर्हित कर दिया- उन सबका एक बार ही लोप कर दिया । सब न मालूम कहाँ चले गये । तब अर्जुन ने अद्भुत कसरत दिखानी प्रारम्भ की। ये इतने वेग और इतनी फुर्ती से कसरत करने लगे कि कभी तो दर्शकों को उनका शरीर छोटा मालूम होता था, कभी बड़ा । कभी वे रथ के ऊपर बैठे देख पड़ते थे, कभी रथ के भीतर । अभी वे रथ पर बैठे हैं, अभी बात की बात में पृथ्वी पर खड़े दिखाई देते है । इसके अनन्तर अनेक प्रकार के बाणों से कभी फूल की तरह कोमल चीजें,