पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/५४

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सचित्र महाभारत [पहला खण्ड ___ इस समय राज-सारथि अधिरथ ने सुना कि अर्जुन और कर्ण से परस्पर विवाद हो रहा है । इन्होंने कर्ण का पालन-पोपण किया था। इससे यह समाचार सुन कर इन्हें बड़ा दुःख हुआ। अर्जुन और कर्ण की शत्रता इन्हें बहुत खटकी । युद्ध निवारण करने के लिए वे घर से तुरन्त बाहर निकले । जल्दी जल्दी चलने से उनका साग शरीर पसीने पसीने हो गया। शरीर के वस्त्र अस्त-व्यस्त हो गये। दुपट्टा रास्ते ही में गिर गया। इसी विकल अवस्था में अधिरथ ने रङ्गभूमि में प्रवेश किया। महाबली कर्ण ने पिता के तुन्य अधिरथ सारथि को आता देख, उनकी मर्यादा रखने के लिए, धनुप को फेंक कर सारे सभासदों के सामने उन्हें प्रणाम किया। अधिग्थ ने देखा कि कर्ण के शरीर में न कोई घाव है, न चोट ही का कोई चिह्न है । इससे उन्हें परमानन्द हुआ । गजसिंहासन पर बिठान के समय कर्ण के मस्तक पर जा पवित्र जल छिड़का गया था उससे उनका मिर अब तक गीला था। प्रेम-विह्वल होकर अधिरथ ने उस पर अपने आँसू गिरा कर उस और भी गीला कर दिया। उन्होंने कर्ण को 'पुत्र', 'पुत्र', कह कर बार बार अपना प्रेम प्रकट किया। यह देख कर भीमसेन ने इस प्रकार अनुचित वाक्य-बाण छोड़े :--- हे सूतपुत्र ! हमने आशा की थी कि युद्ध के क्षेत्र में अर्जुन के समान अद्भुत वीर के हाथ से तुम प्राण छोड़ कर अच्छी गति को प्राप्त होगे । परन्तु हमारी यह आशा पूरी होती नहीं देख पड़ती । कुत्ता जैसे यज्ञ का हविष्यान्न खाने के योग्य नहीं समझा जाता, उसी तरह अङ्गदेश का राज्य तुम्हें भी शोभा नहीं देता। तुम्हारे कुल में जा घोड़ा की रास थामने का पेशा होता आया है वही तुम्हारे लिए भी अच्छा होगा। ___ऐसे कठोर और उद्दण्ड वचन सुन कर कर्ण क्रोध से अधीर हा उठे; उनके ओंठ फड़कने लगे। बड़े कष्ट से उन्होंने अपने को सँभाला। उस समय मायङ्काल होने का था। सूर्य्य डूबने में थोड़ी ही देर थी। डूबते हुए सूर्य को वे एकटक देखने लगे। दुर्योधन से भीम की बात न मही गई। भीम ने जो दो अर्थ से भरे वाक्य कह थे उनसे दुर्योधन का बतरह क्रोध हा आया। मतवाले हाथी की तरह अचानक खड़े होकर उन्होंने कहा : हे भीम ! यह शिष्टाचार-हीन बात तुम्हारे याग्य नहीं हुई। तुम्हें अपने मुँह से ऐसी अनुचित बात न निकालनी थी। क्षत्रियों में बल ही देखा जाता है। अधिक बली ही श्रेष्ट माना जाता है। जो अपनी भुजाओं के बल से सारी पृथ्वी जीत सकता है उसके लिए अङ्ग-देश का गज्य तो कोई चीज़ ही नहीं। वसुसेन दिव्य कवच और कुण्डल-समेत पैदा हुए हैं । इससे सूचित होता है कि उनका जन्म किसी साधारण वंश में नहीं हुआ। उन्होंने किसी बड़े ही उज्ज्वल वंश में जन्म लिया है । कुछ भी हो, अङ्ग-देश का राज्य पाने के विषय में वसुसेन से जो द्वेष रखता हो वह निकल आवे । हम उससे युद्ध करने को तैयार हैं। इस बात को सुन कर सभा में बैठे हुए अनेक लोगों ने धन्य ! धन्य ! कहा। इस समय सूर्यास्त होने के कारण उस दिन अस्त्र-परीक्षा का काम बन्द रहा । दुर्योधन ने कर्ण का हाथ पकड़ कर रङ्ग-भूमि से प्रस्थान किया। सभा भङ्ग हो गई । पुरवासी लोगों में से कोई अर्जुन की, कोई कर्ण की, कोई दुर्योधन की प्रशंसा करते करते सब अपने अपने घर गये । ___ अर्जुन की बराबरी करनेवाले, उन्हीं के समान पराक्रमी, कर्ण को मित्र बना कर दुर्योधन बहुत प्रसन्न हुए। उन्हें बहुत सन्तोष हुआ। बुद्धिमान् युधिष्ठिर कर्ण को अद्वितीय योद्धा जानते थे। इस कारण कर्ण की मित्रता दुर्योधन से हो जाने पर उन्हें बहुत दुःख हुआ। आगे न मालूम इसका क्या फल हो, यह सोच कर उन्हें बड़ी चिन्ता हुई। शिष्यों को सब विद्या में प्रवीण हो गया देख द्रोण के मन में उनसे गुरुदक्षिणा लेने की इच्छा हुई। सब शिष्यों को बुला कर उन्होंने कहा : ____ हे शिष्य ! तुम लोग पाञ्चाल देश के राजा द्रुपद को युद्ध में हराकर उसे हमारे पास कैदी की तरह पकड़ लाओ। इसी को हम गुरुदक्षिणा समझेंगे।