पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/५६

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३६ सचित्र महाभारत [पहला खरडे मुँह से न निकला। उन्हें मन ही मन महादुःख हुआ। उनका हृदय फटने लगा। उन्हें इस तरह व्याकुल और दुखी देख कर द्रोण ने फिर कहा : हे वीर ! डरो मत । तुम्हारे प्राण न लिये जायँगे। तुम्हें मारना हम नहीं चाहते। ब्राह्मण स्वभाव ही से भोले भाले होते हैं। वे क्षमा करना खूब जानते हैं। फिर तुम्हारे साथ लड़कपन में हमने एक ही जगह खेला खाया है। इससे तुम पर सदा हमारी प्रीति बनी रहेगी, तुम पर हमाग स्नेह कभी कम नहीं हो सकता। महाराज! इसी बालपन की प्रीति और मैत्री को याद करने के लिए एक बार हमने तुमसे प्रार्थना की थी। पर तुमने हमारा अपमान किया। राजमद से उन्मत्त होकर तुमने कहा कि राजा के साथ एक साधारण आदमी की मैत्री नहीं रह सकती। इस समय हम पहले ही की तरह तुम्हारे साथ मैत्री स्थापन करने की इच्छा रखते हैं। हम चाहते हैं कि तुम अब भी हमारे मित्र बने रहो । इसी से हमारी और तुम्हारी अवस्था में जो भेद था-अर्थात् तुम राजा थे, हम एक साधारण मनुष्यउसे दूर करने के लिए हम तुम्हारा आधा राज्य लत हैं। बाक़ी का आधा तुम्हें हम लौटाते हैं। इस तरह हमारे और तुम्हारे दानों के राजा हो जाने पर तुम्हें हमारे साथ मैत्री करने में कोई उन न होना चाहिए। राजा द्रुपद कैदी की दशा में थे। इसस द्रोण की बात मान लेने के सिवा और वे कर ही क्या सकते थे। लाचार होकर उन्होंने द्रोणाचार्य का कहना अङ्गीकार कर लिया। परन्तु उस दिन से बद्रोण के वध का उपाय ढूँढ़ने लगे। और सब काम उन्होंने छोड़ दिय । बहुत दिनों तक वे ऋषियों और मुनियों के आश्रमों में भटकते रहे। पर द्रोण के मारने की काई युक्ति उन्हें न सूझी। उनकी सारी मेहनत व्यर्थ गई; किसी ने कोई तदबीर द्रोण के मारने की न बताई। अन्त में महर्षि याज और उपयाज की मदद से द्रोण का मारनेवाला एक पुत्र पाने की इच्छा से उन्होंने पुत्रेष्टि नामक एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। उस यज्ञ की अग्नि से उन्हें धष्टद्य म्न नामक एक महावली पुत्र और कृष्णा नाम की एक महा रूपवती कन्या प्राप्त हुई । इसी पुत्र ने आगे चल कर द्रोण का वध किया। काशिराज की कन्या अम्बा ने भी भीष्म के वध के लिए इसी यज्ञ से नया जन्म लिया । उसका नाम हुआ शिखण्डिनी। ___ इधर द्रोणाचार्या अपने शिष्यों से बिदा हुए । विदा होने के समय अपने प्यार शिष्य अर्जुन को उन्होंने अनेक प्रकार के अद्भुत अद्भुत अस्त्र-शस्त्र दिये । अनन्तर हस्तिनापुर से प्रस्थान करके उत्तर पाञ्चाल राज्य पर अपना अधिकार जमाया और सुखपूर्वक वहाँ राज्य करने लगे। ___इस तरह सब बातों में पाण्डवों का बढ़ा हुआ बल, पराक्रम और तेज देख कर धृतराष्ट्र को डर लगा कि अब हमारे पुत्रों की कुशल नहीं। वे किसी न किसी दिन ज़रूर निकाल जायँगे । इस कारण वे पाण्डवों से ईष्या-द्वेष करने लगे। उनकी कीर्ति बढ़ते देख धृतराष्ट्र को दुःख होने लगा। इससे वे किसी तरह अपने दिन काटने लगे। ४-धृतराष्ट्र के पुत्रों का पाण्डवों पर अत्याचार धृतराष्ट्र ने देखा कि पाण्डु के पुत्रों की बड़ी बढ़ती हो रही है; प्रजा भी उनसे बहुत प्रसन्न हैसब लोग उन्हें बहुत चाहते हैं। इससे धृतराष्ट्र को बड़ी चिन्ता हुई। मन ही मन वे अधीर हो उठे। उन्होंने मन्त्री कणिक को बुला भेजा । मन्त्री के आने पर धृतराष्ट्र ने कहा : हे ब्राह्मणों में श्रेष्ठ ! अपने पुत्रों के राज्य पाने के विषय में हमें दिन दिन सन्देह हो रहा है। हम नहीं जानते, क्या करने से उन्हें राज्य प्राप्त हो सकेगा। आप अच्छी राजनीति जानते हैं। आपसे