पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/६३

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पहला खण्ड धृतराष्ट्र के पुत्रों का पाण्डवों पर अत्याचार किया। इस प्रकार पुरोचन का सर्वनाश करके पाण्डव लोग उस घर के बाहर हो गये। किसी का बाल तक बाँका न हुआ। इधर पुरोचन ने अपने किये का पूरा फल पाया। जल कर वह खाक हो गया। और उसके साथ ही वह स्त्री भी अपने पाँचों पुत्रों सहित जल गई । अग्नि की ज्याला बढ़ने पर अचानक ऊँची ऊँची लपटें उठते देख पुरवासियों ने हाहाकार मचाया। चारों तरफ से वे दौड़ पड़े। उन्होंने देखा कि जिस स्थान में पाण्डव रहते थे वह अग्निगर्भ चीजों से बनाया गया था। जान बूझ कर उसमें ऐसी चीजें लगाई गइ थीं जो आग छ जाते ही भक से जल उठे । यह हाल देख सव पुरवामी छाती पीटने लगे। उन्होंने रोना और विलाप करना आरम्भ किया। वे कहने लगे : हाय ! कौरवों के कुल में यह दुर्योधन कलङ्क के समान पैदा हुआ। उसी का यह कर्म है। उसी के कहने से पापात्मा पुरांचन ने यह घर बनवा कर उसकी दुष्ट इच्छा पूरी की है। परन्तु धर्म की महिमा तो देखो ! उस नराधम के भी घर में आग लग गई। वह भी जल मग । जलते हुए उम लाक्षागृह के चारों तरफ़ सारी रात पुरवासियों ने इसी तरह विलाप किया। इस बीच में माता कुन्ती को साथ लेकर पाण्डव लोग जल्दी जल्दी किसी ऐसी जगह पहुँचने का यत्न करने लगे जहाँ किसी तरह का डर न हो। किन्तु गत भर जगने और आग से जलने के डर के मारे वे इतना थक गये थे कि पद पद पर ठोकरें खा खा कर गिरने लगे। उन समय महाबली भीमसेन ने किसी को कन्धे पर चढ़ाया, किसी को गोद में उठाया और किसी का हाथ पकड़ा । इस तरह सबको धीरज देते हुए वे आगे बढ़े। ____लक्षागृह के जलन की खबर हस्तिनापुर पहुँचते ही महात्मा विदुर ने पाण्टबों की सहायता के लिए विश्वासपात्र आदमी भेजा। वह पाण्डवों को इढ़ते हुए उनके पीछे पीछे चला। यह वही मनुष्य था जिसने दुर्योधन के कपट-जाल का पता लगाने के समय विदु की सहायता की थी। धीरे धीरे पाण्डत लोग गङ्गा के किनारे उपस्थित हुए और पार करने का उपाय सोचने लगे। उसी समय यह मनुष्य एक नेज नाव लेकर उनके पास आया । युधिष्ठिर से बिदा होत समय विदुर ने जिम अज्ञात भाषा में उपदेश दिया था उसकी सूचना देकर उस मनुष्य ने युधिष्ठिर को अपना विश्वास दिलाया । अनन्तर वह बाला : हे महात्मा ! सब बातों के ज्ञाता आपके चचा विदुर ने आपको आशीर्वाद दिया है । सारथि-पुत्र वससेन, सब भाइयों समेत दोधन, और शकुनि ने यह विश्वासघात आपके साथ किया है। यह कपटजाल इन्हीं का रचा हा आप समझिए । इस समय इस नाव पर आप सवार हजिए और जितनी जल्दी हो सके विपद के स्थानों को पार करके किसी निर्भय स्थान में जाकर ठहरिए । इसके अनन्तर इस मनुष्य ने मल्लाह का काम किया । कुन्ती समंत पाण्डवों को नाव पर बिठला कर उसने गङ्गा के उस पार पहुँचा दिया । वहाँ पर उसने उन्हें एक ऐसे स्थान में ठहराया जहाँ किसी तरह का डर न था। फिर पाण्डवों का जय-जयकार करते हुए उसने बिदा माँगी। पाण्डवों ने विदुर को प्रणाम कहा और अपने कुशल-समाचार उनसे कहने के लिए उस दूत से प्रार्थना की। दूत जब चला गया तब पाण्डवों ने वहाँ अधिक समय तक ठहरना उचित न समझा। इसस वे वहाँ से झटपट उठ खडे हुए श्री कोई सुरक्षित स्थान हूँढ़ने के लिए जल्दी जल्दी चले। अब वारणावत् का हाल सुनिए । लाक्षागृह में आग लगने के समाचार जिन लोगों ने न सुने थे प्रात:काल होने पर उन्होंने भी सुने । सारा नगर वहाँ आकर इकट्ठा हो गया। जब आग बुझ गई तब शस्त्रागार में पुरोचन के जले हुए शरीर की राख मिली। लाक्षागृह के आँगन में भी जले हुए छः मनुष्यशरीर पाये गये । उन्हें देख कर लोगों ने समझा कि पाण्डव जरूर जल गये, इसमें कोई सन्देह नहीं । उस बेलदार ने लाक्षागृह की मरम्मत करने के बहाने उस गदे और सुरङ्ग में खूब मिट्टी भर दी थी। इससे किसी