पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/६४

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४४ सचित्र महाभारत [पहला खण्ड को उनका पता न चला । प्रजाजन बेतरह रोने, चिल्लाने और विलाप करने लगे। धृतराष्ट्र, भीष्म, विदुर आदि सभी को उन्होंने इस हत्या का कारण समझा। वे कहने लगे : इस पाप-कर्म का सारा दोप इन्हीं लोगों के सिर पर है। किस तरह इन लोगों ने पापी दुर्योधन के कहने से ऐसा घोर पाप-कर्म किया ! कुछ भी हो, अब हम लोग जाकर उन्हें खबर दें कि आपकी मनोकामना सफल हुई; पाण्डव जल गय । अब आप खूब खुशी मनाइए! हस्तिनापुर में सव समाचार यथासमय पहुँचे। तब लागों ने जाना कि क्यो पाण्डव वारणावत् भेजे गये थे। तब तक उनके वारणावत् भेजे जाने का ठीक ठीक कारण वहाँगालों को न मालूम था। सब कच्चा हाल जान कर हस्तिनापुर के लोगों को बड़ा दुःख हुआ। मारे शोक के वे व्याकुल हो उठे । परन्तु इस बीच में दुर्योधन ने अपनी चतुरता और धूर्तता से सबको वश में कर लिया था। इससे कोई कुछ कर न सका । सब लोग मन ही मन मिसूस कर रह गये । महाराज धृतराष्ट्र विलाप करने लगे : हाय ! माता समंत पाँचों भतीजों के न रहन से भाई पाण्डु आज सचमुच ही मर गये । हे मन्त्रि-जन ! तुम लोग तुरन्त वारणावत् जाव और उन पाँचों वीरों और कुन्ती का यथाचित मरण-संस्कार करी । उनकी अन्त्येष्टिक्रिया बहुत अच्छी तरह करना, जिससे उनकी अच्छी गति हो और वे स्वर्ग को जायँ। जो कुछ होना था हो गया; इस समय उनका परलोक बनाने में किसी तरह की कमी न होनी चाहिए। जाति के सब लोगा न हाय कुन्ती । हाय यधिष्ठिर । हाय भीम । हाय अर्जुन ! हाय नकुल ! हाय सहदेव ! कह कह कर गने गने जलाञ्जलि दी। यथार्थ बात क्या थी सा विदुर जानते थे। इससे लोकाचार दिखाने भर के लिए थोड़ा सा बनावटी विलाप करके व चुप हा रहे। उधर दुर्योधन के डर के मार पाण्डवों ने अपना वेश बदल डाला। जब वे वारणावत् से भागे थे, तब रात तो थी ही, इससे नक्षत्र देख कर उन्होंने इस बात का ज्ञान प्राप्त किया कि कौन दिशा किस तरफ है। दिशाओं का ज्ञान प्राप्त करके व दक्षिण की तरफ चले। भीम इतने वेग से चलने लगे कि और भाई उनके वंग को न सह सके । चलने में उन्हें बड़ा कष्ट हुआ। बीच में कई बार वे अचेत हो गये। पहले ही की तरह भाइयों को सहारा देते हुए भीमसेन सबको अपने साथ लिये चलते रहे। ऊँची नीची जगहों में वे माता को पीठ पर चढ़ा लेने लगे। इसी तरह वे बराबर चले गये । शाम को वे एक घने वन में पहुँचे। धीरे धीरे घोर अन्धकार छा गया । वन ऐसा विकट था कि न वहाँ जल था, न कोई फल-फूल ही खाने योग्य थे। शेर, बाघ और रीछ आदि घातक जानवरों से वन भरा हुआ था। चारों और पशु-पक्षियों का डरावना शब्द सुनाई पड़ रहा था। हवा बड़े जोर से चल रही थी। नींद और भूख के मार पाण्डवों की बुरी दशा थी। उनका शरीर काठ का सा हो गया था। चलने की शक्ति प्रायः किसी में न रह गई थी। इस समय कुन्ती को बड़ी प्यास लगी। प्यास से व्याकुल होकर वे विलाप करने लगी : हाय ! पाँच पाण्डवों की मा होकर भी और पुत्रों के साथ रह कर भी हम एक बूंद पानी के लिए तड़प रही हैं! भीमसेन का हृदय बहुत कामल था। वे माता की दीन वाणी को न सह सके । वे विह्वल हो उठे और बहुत देर तक उस घोर वन में इधर-उधर घूमते रहे। घूमते घूमते उन्हें बरगद का एक छायादार वृक्ष देख पड़ा । उसके नीचे की जगह बहुत ही रमणीय थी। वहीं भीमसेन सबको ले गये। सबके विश्राम का वहीं प्रबन्ध करके उन्होंने युधिष्ठिर से कहा: हे आर्य्य ! आप सब लोग यही आराम से लेटें और थकावट दूर करें । मैं आपके लिए पानी उड़ने जाता हूँ ! सारसों का शब्द दूर सुनाई पड़ रहा है। वहाँ जरूर पानी होगा।