पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/७९

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पहला खण्ड ] पाण्डवों का विवाह और राज्य की प्राप्ति राजा द्रुपद यह बात सुन कर बड़े चक्कर में आये । उन्होंने कहा : हे कुरुनन्दन ! एक पुरुष की बहुत स्त्रियाँ तो हो सकती हैं; पर एक स्त्री के बहुत पति होना हमने कभी नहीं सुना। यह बात प्रसिद्ध है कि तुम धर्मात्मा और पवित्र स्वभाव के हो। इसलिए तुम्हारे मुँह से ऐसी बात का निकलना शोभा नहीं देता। यह काम लोकाचार और वेद दोनों ही के विरुद्ध है। युधिष्ठिर तरह तरह की युक्तियाँ दिखा कर कहने लगे : महाराज ! धर्म की बातें बहुत गूढ़ हैं। हम बाप-दादों की चाल पर चलना धर्म समझते हैं। पर सच तो यों है कि जो बात एक जगह अधर्म है वही दूसरी जगह धर्म हो जाती है। इसी तरह जो बात एक जगह धर्म है वही दूसरी जगह अधर्म हो सकती है। एक तो हमारी माता विवाह के लिए आज्ञा दे चुकी है। दूसरे सबको मालूम है कि हमारे मन में कभी अधर्म की बात नहीं आती। इससे इस विषय में जो हम कहते हैं वही करना कई कारणों से ठीक मालूम होता है। अब आप अधिक पसोपेश न कीजिए। हमारे कहने ही को धर्म समझिए। द्रपद ने कहा :-हे धर्मराज ! यदि तुम इसे ही सचमुच अच्छा काम समझते हो तो हम कही क्या सकते हैं। जो हो, आज तुम माता के साथ इस विषय में फिर अच्छी तरह सलाह कर लो। कल तुम सब मिल कर जो बात ठीक करोगे वही हम करेंगे। ___ इस विषय में तरह तरह की बातें हो ही रही थीं कि इतने में महर्षि द्वैपायन वहाँ आ गये। उनको देख कर द्रुपद आदि पाञ्चाल लोग और युधिष्ठिर आदि पाण्डव लोग खड़े हो गये और भक्तिभावपूर्वक प्रणाम किया। महर्षि की आज्ञा पा कर सब लोग बैठ गये। जब वे थोड़ी देर आराम कर चुके तब द्रुपद ने नम्रतापूर्वक कहा : भगवन् ! युधिष्ठिर कहते हैं कि द्रौपदी का विवाह पांचों भाइयों से हो। किन्तु, हे ब्राह्मणों में श्रेष्ठ ! एक स्त्री के बहुत से पति तो कहीं नहीं देखे जाते। इसलिए धर्म के अनुसार यह बात कैसे हो सकती है ? इस विषय में जो उचित समझिए, आज्ञा दीजिए। धृष्टद्युम्न ने कहा :-हे महर्षि ! बड़ा भाई यदि सुशील है तो छोटे भाई की स्त्री के साथ कैसे विवाह करेगा ? शायद हम धर्म की गूढ़ बातें अच्छी तरह नहीं समझते; पर द्रौपदी का विवाह पाँच पाण्डवों के साथ हम कदापि नहीं कर सकते। व्यासदेव के उत्तर देने के पहले ही युधिष्ठिर कहने लगे : हे पितामह ! आप तो जानते हैं कि हमारे मुँह से कभी झूठी बात नहीं निकलती। हम सच कहते हैं, हमारे मन में कभी अधर्म नहीं आता। इसलिए यदि यह बात धर्म के विरुद्ध होती तो हमारे मन में कैसे आती ? पुराणों में लिखा है कि गौतमवंश की जटिला नाम की एक कन्या का विवाह सात ऋषियों के साथ हुआ था और वाक्षी नाम की मुनि-कन्या प्रचेता नामक दस भाइयों को व्याही गई थी। इसके सिवा माता ने भिक्षा में पाई हुई और चीजों की तरह द्रौपदी को भी सब लोगों को मिलकर भोग करने के लिए कहा है। जो कुछ बड़े लोग कहें वह अधर्म नहीं हो सकता। इसलिए, हे देव ! हम तो इसको परम धर्म ही समझते हैं । ___कुन्ती बोली :-युधिष्ठिर ने जो कहा, हमने वही कह डाला था। हम मूंठ से बहुत डरती हैं। इसलिए, हे भगवन् ! ऐसी युक्ति कीजिए जिससे झूठ से हमारी रक्षा हो। व्यासदेव ने यथार्थ बात अच्छी तरह समझ कर सबको शान्त किया। द्रुपद को अलग ले जाकर उन्होंने धर्म की गूढ़ बातें अच्छी तरह समझा दीं। उन्होंने कह दिया कि देश, काल और अवस्था के भेद से धर्म का भेद होता है। अर्थात् जो बात एक समय, एक जगह, एक हालत में