पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/८६

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सचित्र महाभारत [पहला खण्ड मैंने ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण किया है। इसलिए इस समय धर्मानुसार मैं तुम से विवाह नहीं कर सकता। उलूपी बोली :-हे पाण्डव ! आप किस लिए वन में घूमते हो सो मैं जानती हूँ। जब आपने अपना ही बनाया हुआ नियम पालन करने के लिए ब्रह्मचर्य धारण किया है तब विवाह करने में कोई अधर्म न होगा । इसके सिवा, यदि इसमें आपके धर्म की थोड़ी बहुत हानि भी होगी तो वह हानि उस आनन्द के पुण्य के फल से खण्डित हो जायगी जो आप से मुझे मिलेगा। यदि आप न मानेंगे तो मैं निश्चय ही प्राण दे दूंगी । इसलिए मेरे माथ विवाह करने से आपको प्राण-दान करने का भी फल होगा। यह युक्ति-पूर्ण बात सुन कर अर्जुन विवाह करने को गजी हुए। वह रात उन्होंने सर्पराज के घर ही में बिताई । दूसरे दिन मबेरे उलूपी को साथ लेकर वे गंगा के किनारे आश्रम में लौट आये और वहाँ कुछ दिन निवाम किया। _ इसके बाद अर्जुन अंग, वंग, कलिंग देशों के तीर्थ, देवालय और सिद्ध लोगों के आश्रमों के दर्शन करते हुए घूमने लगे । कलिंग देश को पार करके वे समुद्र के किनारे के रास्ते से मणिपर नामक नगर में पहुँचे । मणिपर के राजा के चित्रांगद नामक एक कन्या थी। वह अत्यन्त सुन्दरी थी। उस समय वह नगर में इधर उधर घूम रही थी। उस सुन्दरी को देख कर अर्जुन को उससे भी विवाह करने की इच्छा हुई। राजा के पास जा कर उन्होंने विवाह की बात चलाई । राजा ने पूछा, आप कौन हैं ? अर्जुन ने कहा :-हम कुरुवंशी क्षत्रिय हैं। हमारा नाम अर्जुन है। तब मणिपुर के राजा बोले :-- हे अर्जुन ! हमारे एक पूर्व-पुरुप की कठिन तपस्या से प्रसन्न हो कर महाहेव जी ने यह वर दिया था कि हमारे वंश में सबके एक ही पुत्र होगा। अब तक सबके वही हुआ है। केवल हमारे ही यह कन्या हुई है। इसलिए हमने इसको पुत्र के समान पाला है। और इसी के द्वारा वंश की रक्षा करने के इरादे से इस कन्या के पुत्र को हमने अपना वारिस बनाना निश्चित किया है । इसलिए यदि तुम इसके गर्भ से पैदा हुए लड़के को हमारा ही वंशधर मानने को राजी हो तो इसके साथ तुम्हारा विवाह होने में कोई बाधा नहीं है। . अर्जुन ने इस बात को मान लिया और रीति के अनुसार चित्रांगदा से विवाह कर के तीन वर्प तक वहाँ रहे। __ इसके बाद अर्जुन को फिर यात्रा करने की इच्छा हुई। इस बार वे दक्षिणी महासागर के निकट-वासी तपस्वियों के प्यारे अति पवित्र तीर्थस्थानों को गये। इसी बीच में चित्रांगदा के गर्भ से उनके बभ्रुवाहन नामक एक पुत्र हुआ। यह सुन कर वे उसे देखने के लिए मणिपुर लौट आये । इसके बाद उन्होंने गोकर्ण तीर्थ की ओर यात्रा की। भारतवर्ष के पश्चिमी तीर्थों में घूमते घामते अन्त में अर्जुन प्रभास-तीर्थ में पहुंचे। मित्र अर्जुन के आने का समाचार सुनते ही कृष्ण जल्दी से उनके पास गये और गले से लगा कर बड़े प्रेम से उनसे मिले । अजुन से वनवास का कारण सुन कर उन्होंने कहा कि जो कुछ तुमने किया, ठीक किया। अपने मित्र अर्जुन का मन बहलाने के लिए कृष्ण ने रैवतक पर्वत पर तरह तरह के आमोद-प्रमोद का प्रबन्ध किया। थोड़े ही दिनों में उनको वे वहाँ ले गये । वहाँ सुन्दर सजे हुए और परम रमणीय स्थान में दिन को नाच, गाने आदि का आनन्द लेकर रात को दोनों मित्र दूध के समान सफ़ेद शय्या पर इक? सो जाने । अर्जुन ने अपनी यात्रा में जो जो रमणीय दृश्य और