पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/९८

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सचित्र महाभारत [पहला खण्ड राजां ने प्रसन्नतापूर्वक युधिष्ठिर की अधीनता अङ्गीकार की और नाना प्रकार के रत्न भेंट करके अपनी कृतज्ञता दिखाई। इसी समय जरासन्ध का पुत्र, पुरोहित को आगे करके, अपने मन्त्रियों और कुटुम्बियों के साथ, डरते डरते कृष्ण के पास आया। कृष्ण ने उस भयातुर राकुमार को धीरज दिया और उसे मगधराज की गद्दी पर बिठाया । उसने युधिष्ठिर के लिए कर-स्वरूप बहुत सा धन-रत्न कृष्ण को दिया। इसके बाद मगधराज की पताका जिस पर फहरा रही थी ऐस ग्थ पर बैठकर दोनों पाण्डवों के साथ कृष्ण जल्दी जल्दी खाण्डवप्रस्थ पहुंचे और युधिष्ठिर से बोले :- हे राजों में श्रेष्ठ । मौभाग्य से भीम ने जरासन्ध को लड़ाई में मार डाला और कैदी राजां को कारागार से छुड़ा दिया । अब आपके इच्छित साम्राज्य पाने और गजसूय यज्ञ करने में कोई बाधा नहीं देख पड़ती। युधिष्ठिर इस खुशखबरी को सुन कर बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंन कृष्ण का सत्कार करके उन्हें और भीम अर्जुन को बड़े स्नेह से गले लगाया। कृष्ण सबको आशीर्वाद-प्रणाम करके अपने नगर गये। इसके बाद सम्राज्य की जड़ मजबूत करने, और अपने अधीन राजों से कर लेकर यज्ञ के लिए बहुत सा धन इकट्ठा करने के इरादे से युधिष्ठिर ने चारों भाइयों को दिग्विजय के लिए भेजा। अर्जुन उत्तर दिशा की ओर गये। वहाँ उन्होंने प्राग्ज्योतिष देश के राजा भगदत्त को, उलूक देश के निवासी बृहन्त को और काश्मीर देश के सारे क्षत्रिय-वीरों को अपने वश में किया। पीछे उत्तरकुरु नामक गान्धर्व देश में जाकर युद्ध की तैयारी की। तब नगर के महाविकट डीलडौलवाले द्वारपालों ने अर्जुन के पास आकर कहा :- हे भाग्यशाली अर्जुन ! इस नगरी को मनुष्य नहीं जीत सकते । इस नगरी में तुम्हारा प्रवेश करना ही तुम्हारी शक्ति का परिचय देता है। देखो, माया के प्रभाव से यहाँ.कोई चीज जीतने के योग्य नहीं देख पड़ती। पर हम तुम पर प्रसन्न हैं। इसलिए बतलाओ, तुम क्या चाहत हो ? अर्जुन हँस कर बोल :- हम राजा युधिष्ठिर की साम्राज्य स्थापना के लिए युद्ध करते हुए फिर रहे हैं। इसलिए यदि आप हमें कर के तौर पर कुछ दे दंग तो हमारा मतलब सिद्ध हो जायगा। तब द्वारपालों ने अर्जुन को वस्त्र, गहने, सुन्दर मृगचर्म और अच्छे अच्छे रेशमी वस्त्र कर के तौर पर दिये। भीमसेन पूर्व दिशा की ओर गये और पाञ्चाल, विदह आदि बहुत से देशों से कर इकट्ठा करके चेदिराज शिशुपाल के पास पहुँचे । शिशुपाल ने मित्र की तरह उनका सत्कार किया और बिना कहे ही अधीनता स्वीकार करके पूछा :-- हे महाबाहो ! कहिए, हमारे लिए क्या आज्ञा है ? जो कुछ आप कहें, हम करने को तैयार हैं। भीमसेन बोले :-हम धर्मराज युधिष्ठिर के आज्ञानुसार कर इकट्ठा कर रहे हैं। यह सुनने ही शिशुपाल ने यथाचित कर दे दिया। - इसके बाद भीमसेन ने कोशलनरंश, बृहद्बल, काशिराज और राजपति क्रथ आदि बहुत से राजों को बाहुबल से जीन कर रन, चन्दन, अगर, वस्त्र, मणि, मुक्ता, कम्बल, सोना, चाँदी आदि बहुत सी चीजें संग्रह की।