पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१०

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इन समुल्लासों में जो कि सत्यमत प्रकाशित किया है वह वेदोक्त होने से मुझको सर्वथा मन्तव्य हैं और जो नवीन पुराण तन्त्रादि ग्रन्थोक्त बातों का खण्डन किया है वे त्यक्तव्य हैं । जो १२ बारहवें समुल्लास में दर्शाया चार्वाक का मत यद्यपि इस समय क्षीणास्तसा है और यह चार्वाक बौद्ध जैन से बहुत सम्बन्ध अनीश्वरवादादि में रखता है यह चार्वाक सब से बड़ा नास्तिक है उसकी चेष्टा का रोकना अवश्य है, क्योंकि जो मिथ्या बात न रोकी जाय तो संसार में बहुत से अनर्थ प्रवृत्त हो जायें चार्वाक का जो मत है वह तथा बौद्ध और जैन का जो मत है वह भी १२ वें समुल्लास में संक्षेप से लिखा गया है और बौद्धों तथा जैनियों का भी चार्वाक के मत के साथ मेल है और कुछ थोड़ासा विरोध भी है और जैन भी बहुत से अंशों में चार्वाक और बौद्धों के साथ मेल रखता है और थोड़ीसी बातों में भेद है । इसलिये जैनों की भिन्न शाखा गिनी जाती है वह भेद १२ बारहवें सगुल्लास में लिख दिया है यथायोग्य वहीं समझ लेना जो इसका भेद है सो २ बारहवें समुल्लास में दिखलाया है बौद्ध और जैन मत का विषय भी लिखा है । इनमें से बौद्धों के दीपवंशादि प्राचीन ग्रन्थों में बौद्धमतसंग्रह सर्वदर्शनसंग्रह मे दिखलाया है उसमें से यहां लिखा है और जैनियों के निम्नलिखित सिद्धान्तों के पुस्तक है । उनमें से ४ चार मूल सूत्र, जैसे--१ आवश्यकसूत्र, २ विशेष आवश्यकसूत्र, ३ दशवैकालिकसूत्र और ४ पाक्षिकसूत्र । ११ ग्यारह अङ्ग, जैसे -१ आचारांगसूत्र, २ सुगडांगसूत्र ३ थाणांगसूत्र, ४ समवायांगसूत्र, ५ भगवतीसूत्र, ६ ज्ञाताधर्मकथासूत्र, ७ उपासकदशासूत्र, ८ अन्तगदृदशासूत्र, ९ अनुत्तरोववाईसूत्र, १० विपाकसूत्र, ११ प्रश्नव्याकरण सूत्र । १२ बारह उपांग, जैसे - १ उपवाईसूत्र, २ रायपसेनीसूत्र, ३ जीवाभिगमसूत्र, ४ पन्नवणासूत्र, ५ जंबूद्वीपपन्नतीसूत्र, ६ चन्दपन्नतीसूत्र, ७ स्नूरपन्नतीसूत्र, ८ निरियाक्लीसूत्र, ९ कप्पियासूत्र, १० कपवड़ीसयासूत्र, ११ पूप्पियासूत्र और १२ पुण्यचूलियासूत्र । ५ कल्पसूत्र, जैसे-१ उत्तराध्ययनसूत्र, २ निशीथसूत्र, ३ कल्पसूत्र, ४ व्यवहारसूत्र और ५ जीतकल्पसूत्र । ६ छः छेद, जैसे - १ मानिशीथबृहद्वाचनासूत्र, २ महानिशीथलघुराचनासूत्र, ३ मध्यमवाचनासूत्र, ४ पिण्डनिरुक्निसूत्र, ५ ओघनिरुक्तिसूत्र, ६ पर्यूषणासूत्र । १० दश पयन्नासूत्र, जैसे - १ चतुस्सरणसूत्र, २ पच्चरवाणसूत्र, ३ तदुलवैयालिकसूत्र, ४ भक्तिपरिज्ञानसूत्र,