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८८ अत्याप्रकाश: !




का जिससे ये मुख्य हैंइससे मुख से उत्पन्न हुए ऐसा कथन संगत होता है , अर्थन जैसा मुख सय अनों में श्रेष्ठ है वैसे पूर्ण विद्या और उत्तम गुण कर्म स्वभाव { से युक्त होने से संतुष्यजाति में उत्तम माह्मण कहता है जत्र परमेश्वर के निराकार होने से मुखात्रि अज्ञ ही नहीं हैं तो मुख से उत्पन्न होना असम्भव है । जैसा कि बन्या बी आदि के पुत्र का विवाह होन 4 और जो मुखादि अन्ढों से व्ाह्मण।दि उत्पन्न होते तो उपाहवाल कारण के सा ब्राह्माद की आकृति अवश्य होती जैसे सुख का आकार गोलस'ल है वैसे ही उन के शरीर का भी गोल माल मुखाकृति के समान होना चाहिये क्षत्रियों के शरीर पुंज्ञा के सहश, वैश्यो के ऊरू के तुल्व में और शूद्रों के शरीर पग के समान आकार वाले होने चाहियें ऐसा नहीं होता और जो कोई तुमसे प्रश्न करेगा कि जो २ मुखादि से उत्पन्न हुए थे उनकी त्राह्मण।दि संज्ञा हो परन्तु तुम्हारी नहीं क्योंकि जैसे सब लोग गर्भाशय से उत्पन्न होते हैं वैसे तुम भी होते हो तुम मुखादि से उत्पन्न न होकर ब्राह्मणदि संक्षा का अभिमान करते हो इसलिये तुम्हारा कहा अर्थ व्यर्थ है और जो हमने अर्थ किया है वह सच्चा है ऐसा ही अन्यत्र भी कहा है जैसा: शूद्रो ब्राह्मणतामेति ब्राह्मण ति शूद्रतापूं। क्षत्रियाजातमेवन्तु वियतैश्यालथैत्र च1 मनु०१०। ६५ ॥ शुकुल में उत्पन्न हो , क्षत्रिय और वैश्य के समान गुण कर्म स्वभाव वाला हो तो वह शूद्र ब्राह्मणक्षत्रिय और वैश्य होजाय वैसे ही जो ब्राह्मणक्षत्रिय और वैश्यकुल में उत्पन्न हुआ हो और उसके गुण कमे स्वभाव शूद्र के सदश हों। तो बह शूद्र हजाय वैसे क्षत्रिय व वैश्य के कुल में संपन्न हो ब्राह्मण वा शूद्र के सगान होने से त्राह्मण बा शूद्र भी होजाता है / अथों चारों वर्षों में जिप २ दरों के सटश जो २ पुरुष ा भी हो वह २ उसी वर्ष में गिनी जावे से धचय्येया जघन्य व: पूर्व पूर्व वर्णमापयने जाति- परिवृतौ ॥ १ ॥ मुखर्मचपेया पू बण जघन्य जघन्य वर्णमापदंते । जातिपवित ॥ २ ॥ ये अपस्तम् के सूत्र हैं ॥ धर्माचरण से निकृष्ट वर्ण अपने से उत्तम २ वर्ग को ? i tता है और वह उसी वर्ग में गिना जावे कि जिस २ के योग्य हर्व ॥ १ 1 ! की