पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१०२

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- - - - - - - नी के से से iई गुड़ास ? थे । न हैं, के में ऐसे कपवनगर में बर्णवाला मनुष्य से वाले न पुष वन डे तस प्रने नचे २ वह गो प्रन होता है . '3ो वर्ग में गिना जावे ॥ २ ॥ जैसे पुरुष जिस २ घर में सोने को में हैप्रेम ही ग्रि गों की भी व्यवस्था समझनी चाहिये । इसमे में थे। ऐसे सपा के इस प्रकार होने से सब यण प्रपने २ गुण कर्म स्वभावयुक्त हाकर 25 %) रखेत 8 पथrन कIRK व के । ध क्षणशन से त्रिग ठय और शूद्र मप्र में ६ पiके इiत्र में आये ता शूद्र बण भी शुद्ध रहत हैं अथान वर्णसंकरता प्रान ने गत रूप से सिमी से की निन्दा व प्रयोग्यता भी न होगी ( प्रश्न ) जो ! किसी मे # t gा वह गुर्जर ो व5 मरे वर्ष में प्रविष्ट होजाथ तो उसके समक्ष शप की मेयर इन गए 'ीर झाझेदन भी हो जगा इसकी क्या यवस्था न पालिद ' ( उत्तर ) न किसी की सेवा का भलू और म वंशच्छेदम होगा। औोंकि न तो ने लडके लडकियों के बदले स्वर्ण के योग्य दूसरे सन्तान विद्या सभा ‘राजम भा ही व्यवस्था से मिलेंगे इसलिये कुछ भी अव्यवस्था में होगी। ए६ गुप कif में बरी की य या कन्याओं की सोलहवें वर्ष और पुरुषों की १भीनमें वर्ष की परीक्षा में नियत करनी चादि थे और इसी क्रम से अर्थात् ब्राह्माण ! व का मतग्रीक्षत्रिय वर्ग का क्षत्रिया, वैश्य वर्ग का वैश्या और शूद्र बर्ण का शत्रा के साथ विवाह होना चाहिये तभी अपने २ वर्षों के कर्म और परस्पर प्रीति भी यथायोग्य रहेग । इन चारों वर्षों के कर्गीय कर्म और गुण ये हैं. अध्यापनध्ययने यजन याजन तथा । - " दान बांग्रहश्चेव ब्राह्मणनामकल्पयत् । १ ॥ मनु०१। ८८ ॥ शो दमस्तः क्षन्तिरर्जवमेध च । ज्ञान विज्ञानमास्तिक् ब्रहकमे स्वभावज ॥ २ ॥ भ० गी० अध्याय १८ । श्लोक ४२ ॥ श्रावण के पटना, पढ़ाना, यज्ञ करना, करना, दुम देना, लेना, य छ: क में हैं परन्तु ‘‘प्रतिमह: प्रत्यबर: ' मनु० 1 अर्थात ( सिम ) लेना नीच कर्म है ॥ १ ॥ ( शम) मम से बुरे काम की इच्छा भी न करनी और उसको अधर्म में कभी प्रवृत्त न होने देना ( दम. ) श्रध्र और चड आदि इन्द्रियों को अन्याथाचरण से रोक कर धर्म में चलाना ( तप ) सदा ब्रह्मचारी जितन्द्रिय ह धर्मानुष्ठान करना ( शौच ) । १२