पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१०४

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चतुसंसुल्टास: ॥ ११ 3 निसारहित प्रगभ दृढ़ रहना ( श्रुति ) घंध्रुवा होना ( दाक्ष्य ) राजा और प्रजा सम्बन्धी व्यवहार और सथ शाों में अति चतुर होना ( युद्ध ) युद्ध में भी दृढ़ शंक रहके उससे कभी न हटना न भागना अर्थात् इस प्रकार से लड़ना कि है जिस निश्चित विजय होवे आप बचे जो भागने से व शत्रुओं को धोखा देने से जीत होती हो तो ऐसा ही करना ( दान ) दानशीलता रखना ( ईश्वरभाव ) पक्षपात रहित होके सब के साथ यथायोग्य वतैना, विचार के देना, प्रतिज्ञा पूरी करना } उसको कभी भन होने न देना । ये ग्यारह क्षत्रिय वर्ग के कर्म और गुण हैं। ॥ २ : वैश्य: पशूना रक्षण दनांमज्याध्ययनमेव च । वणिक्पर्थ कुसीर्द व वैश्यस्य कृषिमेव च ॥ मनु० १। ४० ॥ ( पशुरक्षा ) गाय आदि पशुओं का पालन बर्द्धन करना ( दान ) विद्या धर्म की शुद्धि करने कराने के लिये धनादि का व्यय करना ( इज्या ) अग्निहोत्रादि यज्ञों का करना ( अध्ययन ) बेदादि शों का पढ़ना ( बाणक्यपथ ) सब प्रकार के व्यापार करना ( छुसदि ) एक सैकड़े से चार, छ:, आठबारह, सोलह वा बीस आनों से अधिक ब्याज और मूल से दूना अर्थात् एक रुपया दिया हो तो सौ वर्ष में भी दो रुपये से अधिक न लेना और न देना (कृषि ) खेती करना, ये वैश्य ! के गुण कमें हैं ॥ द्र' -- एकमेव तु शूद्स्य प्रभु: कर्म समादिशत् । एोषामेव वर्णनां शुझूषामनस्या ॥ ससु० १ से ११ ॥ 1 यूढ़ को योग्य है कि निन्दा, ईय, आभिमान आदि दोष को छोड के नाह्माण क्षत्रिय और वैश्यों की सेवा यथावत् करना और उसी से अपना जीवन करना यही एक शढ़ का गुण कर्म है ॥ थे संक्षेप से वर्षा के गुण और कर्म लिखेजिस २ 1 पुरुष में जिस २ वर्ण के गुण कर्म हों उस २ वर्ण का अधिकार देना, ऐसी व्य य वस्था रखने से सब मनुष्य उन्नतिशील होते हैं । क्योकि उसम वर्गों को भय होगा कि जो हमारे सन्तान दोषयुक्त होंगे तो छद्र होजायेंगे मूर्खत्यादि और सन्ताम भी डरते हम न पड़ेगा रहेंगे कि जो उक्त चाल चलन और विद्यायुक्त होंगे तो २द्र ानी । और नीच वर्गों को उत्तम वर्णस्थ होने के लिये उत्साह बढ़ेगा। विद्या और धर्म के प्रचार का अधिकार ब्राह्मण को देना क्योंकि वे पूर्ण विद्यावान् और धार्मिक होने के उस काम को यथायोग्य कर सकते हैं, क्षत्रियों को राज्य के श्राधिकार देने से कभी -