पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१०५

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राज्य की हानि बा विध्न नहीं होता, पशुपालनादि का अधिकार वैश्यों ी को होना ! योग्य है क्योंकि वे इस काम को अच्छे प्रकार कर सकते हैं शुद्ध को सेवा का 1 अधिकार इसलिये है कि वह विद्यायहित पूर्व होने से विज्ञानसम्बन्धी काम कुछ भी नहीं कर सकता किन्तु शरीर के काम सत्र कर सकता है इस प्रकार वर्षों को अपने २ अधिकार में प्रवृत्त करना राजा आदि सभ्यजनों का काम है । विवाह के लक्षण ॥ ब्राह्न दस्तवाः प्राजपत्यस्तथाSसुर: । ' गान्धव राक्षसश्चेव पैशाचश्चाष्टमोsधमः म०३ ।२१ ॥ विवाहू आठ प्रकार का होता है एक ब्राह्म, दूसरा दैव, तीसरा , चौथा प्राजापत्य, पाचवा आपुर, छठा गान्धर्व, सातवां राक्षसआठवां पैशाच 1 इन विवाहो की यह व्यवस्था है कि -वर कन्या दोनों यथावत् ब्रह्माचर्य से पूर्ण विद्वान् धार्मिक और सुशील हों उनका परस्पर प्रसन्नता से विवाह होना ‘नाह' कहता है। विस्ट तयज्ञ करने में अरवि कर्म करते हुए जामाता को अलकारयुक्त कन्या का देना 'दैव बर से कुछ ले के विवाह होना आर्स' । दोनों का विवाह धर्म की वृद्धि के अर्थ होना ‘प्राजापत्य’ 1 वर और कन्या को कुछ देके विवाह्य होना ‘आसुरी'। ' अनियम आसमय किसी कारण से वर कन्या का इच्छापूर्वक परस्पर संयोग होना ‘गान्धर्व'। लड़ाई करके बलास्कार अर्थात् छीन झपट व कपट से कन्या का प्रहण करना ‘रनस' । मद्यादि. पी हुई पागल कन्या से बलात्कार संयोग 'शयन व ( ' । इन सब विवाहो विवाह प्राजापत्य करना ‘‘पेशाच से ब्राह्म सवोत्कृष्ट, देव और

मध्यम, आप आसुर और गान्धर्व निकृष्ट, राक्षस अधम और पैशाच महाभ्रष्ट है।

H इमलिये यही निश्चय रखना चाहिये कि कन्या और वर का विवाह के पूर्व एकान्त मैं मेल न होना चाहिये क्योंकि युवावस्था में स्त्री पुरुष का एकान्तवास दूषणकारक ६ । पर जय कन्या छा वर के विवाह का समय हो अन् जब एक वर्ष वा छः 5ीने त्रा चआम चार विद्या पूरी होने में प रहें तब उन कन्या और कुमार 'Ft ' प्रतिविम्य अr जिमको फोटोग्राफर कहते अथवा प्रतिकृति हैं उतार के कन्या का आयापिकाओं के पास कुमारों की, कुमारी के अध्यापकों के पास। न्या की t प्रतिकृति भेज देवें iजम २ का रूप मिल जाय उम २ के इतिहास इन नन्म से ले के दस दिन पर्यन्त जन्मचरित्र का पुस्तक हो उसको अध्यापक "म गया है जप दो के गुण एर्म स्वभाव समझ हों तय जिस २ के साथ ३१ हूं : छ