पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१०७

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सत्याग्रता !! - के ईसका निश्चय एक मास के पश्चात् रजस्वला न होने पर संघ को हो ज(ता है । साठ, केसर, असगन्ध, छोटी इलायची और सालमसिन डा गर्म कर रक्खा हुआ। जो ठण्डा दूध है उसको यथारुचि दोनों पी के अलग अलग अपनी २ अय्या में शयन करें यही विधि जब २ गर्भाधान क्रिया करें तव २ करना उचित है जब 3 महीने भर में रजस्वला न होने से गर्भस्थति का निश्चय होजाय तब से एक वर्ष पर्धान्य की पुरुष का स मागम कभी न होना चाहिये क्योंकि ऐसा होने से सन्वान उत्तम और पुन: दूसरा सन्तान भी वैसा ही होता है । अन्यथा वीर्य व्यर्थ जात। दोनों की आयु घट जाती और अनेक प्रकार के रोग होते हैं परन्तु ऊपर से भाषणदि

  • प्रेमयुक्क व्यवहार दोनों का अवश्य रखना चाहिये पुरुष वीर्य की स्थिति और ती

गर्म की रक्षा और भोजन छादन इस प्रकार का करे कि जिससे पुरुष का वर्यि स्वप्न में भी नष्ट न हो और गर्भ में बालक का शरीर अल्युतम रूप, लावण्य, पुष्ट, बत, पराक्रमबुक होकर दशवें महीने में जन्म होने विशेष उसकी रक्षा चौथे महीने f से और अति विशेष आठवें महीने से आगे करनी चाहिये कभी गर्भवती की रेचक, रूक्ष, मादकद्रब्य, बुद्धि और बलनाशक पदार्थों के भोजनादि का सेवन न करे किन्तु घी, दूध, उत्तम चावल, गेहूं, , उडु आदि अन्न पान और देशकाठ का भी सेवन युक्तिपूर्वक करे ! गर्भ में दो संस्कार एक चौथे महीने में पसवन और दूसरा आठवें समझने में सीसन्तोन्नयन विधि के अनुकूल करे जब सन्तान का जन्म हो तब अं है और लड़के के शरीर की रक्षा बहुत सावधानी से करे अर्थात् शुणठीपाक अथवा सौ

भाग्य शुण्ठपाक प्रथम ही वनवा रखे उस ससय खुरान्धियुक्क उष्ण जल जो कि

किचिन् ष्ण रहा हो उसी से बी स्नान करे और बालक को भी स्नान करवे तत्प- श्चात् नाड़ीsदन बालक की नाभि के जड़ में एक कोमल सूत से बांध चार गुल छोढ़ के ऊपर से काट डाले उसको ऐसा वधे कि जिससे शरीर से रुधिर का एक विन्दु भी जाने पवे पश्चात् स्थान को शुद्ध करके उसके के भीतर चु- ; न उस द्वार गन्धादियुक्क त्रुतादि का होम करे तत्पश्चात् सन्तान के कान में पिता भंवेदोसीति” ' अर्थात् तेरा नाम वेद है सुनाकर घी और सहृत को लेके सोने की शलाका से जीभ ? पर "छ ३म्' अक्षर लिख कर सधु और आंत को इसी शलाका से चटवावे पश्चात् उसकी गाता को दे देवे, जो दूध पीना चाहे तो उसकी माता पिलावे, जो उसकी माता के दूध न हो तो किसी स्त्री की परीक्षा करके उसका दूध पिलावे पश्चात् दूसरी शुद्ध

कोठरी वा जहां का वायु युद्ध हो उसमें सुगन्विव घी का हम प्रात: और सायंकाल