पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१०८

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चतुसमुल्लास: । ९५ किया कर और इसी में प्रसूता की तथा बालक का रक्ख, छः दिन तक माता का दूध ' पिये और वी भी अपने शरीर की पुष्टि के अर्थ अनेक प्रकार के उत्तम भोजन करे और योनिसंकोच आदि भी करेछठे दिन की बाहर निकले और सन्तान के दूध

पीने के लिये कोई धायी रक्खे उसको खान पान अच्छा करावे वह सन्तान को

दूध पिलाया करे और पालन भी करे परन्तु उसकी माता लड़के पर पूर्ण दृष्टि रक्खे मैं किसी प्रकार का अनुचित व्यवहार उसके पालन में न हो ली दूध बन्द करने के अथे स्तन के अप्रभाग पर ऐसा लेप करे कि जिससे दूध स्रावित न हो उसी प्रकार खान पान का व्यवहार भी यथायोग्य रक्रवे पश्वात् नामकरणादि संस्कार ‘संस्का- १ " की रीति यथाकाछ करता जाय जब ली फिर रजस्वला हो वब शुद्ध है रविधिसे । होने पश्चात् उसी प्रकार अनुदान देवे ॥ ऋतुकालाभिगामी स्यास्वदारनिरतः सदा । पर्ववर्ज जसूचना तख़्ता रतिकाम्यया ॥ मनु० ३। ४५ ॥ निन्यास्वष्टासु चान्यासु स्त्रियो रात्रिभु वर्जयन् । ३५० ॥ ब्रह्मचाख्यंव भवांत यत्र तत्राश्रम वसन् ॥ मनु० । जो अपनी ही वी से प्रसन्न निषिद्ध रानियों मे स्नी से पृथ रहता और अतुगामी होता है वह गृहस्थ भी ब्रह्मचारी के सदृश है । सन्तुष्ट भार्थीया भत भत्र भार्या तथैव च । यस्मिोव कुले नित्य कल्याण तत्र ने ध्रुव ॥ १ ॥ । यदि हि स्त्री न रोचेत पुमांसन्न प्रमोद त् । आप्रमोदपुनः पुसः प्रजन न प्रवक़्ते ॥ २ ॥ खियां तु रोचमानायां सर्व तद्रोचते कुल। तरय स्वरोचमाना सर्वमेव न रोचते ॥ ३ t मनु० ३श्लो॰ ६० । -६२ ॥ जस कुल में भाग्य से भर्ती और पति से पन अच्छे प्रकार प्रसन्न रहती ! है उसा कुल में सब सौभाग्य आर ऐश्वर्य निवास करते हैं। जहां कलह होता है