पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१०९

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सत्याप्रकाश: It ९६ वहां दौभाग्य और दारिख़ स्थिर होता है ॥ १ ॥ जो औी पति से प्रीति और पति ? को प्रसन्न नहीं करती तो पति के प्रसन्न होने से काम उत्पन्न नहीं होता ॥ २ ॥ । ) जिस वीं की प्रसन्नता में सब कुल प्रसन्न होता उस की अप्रसन्नता में सत्र अप्रसन्न ! ' अथत दुखदायक होजाता है ॥ ३ ॥ पितृभिनेतृभिश्ताः पतिभिवरैस्तथा । पूज्या भूषयितव्याधि बहुकल्याणमीप्सुमिः ॥ १ ॥ ' यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यक्रेतास्तु न पूज्यन्ते सस्तनाSफलाः क्रिया: ॥ २ ॥ शोचन्त जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम् । न शोचान्ति त्रता वजूते तद्धि सर्वदा ॥ ३ ॥ } तस्मादता सदा पूज्या भूषणाच्छादनाशूनः ? भूतिकॉमैर्नगर्नियं सस्करेपूरसवेख च ॥ ४ ॥ । , म३ 1 ला० ५५-५७ : 48 P पिता, भाई, पति और देवर को योग्य है कि इनको सत्कारपूर्वक भूषणादि से में प्रसन्न रक्खें, जिनको बहुत कल्याण का इच्छा हो वे ऐसे करें ॥ ॥ जिस घर में वियों का सत्कार होता है उसमें विद्यायुक्त होके देव संझा घग के आ - पुरुष ! नन्द से क्रीडा करते हैं और जिस घर में बियों का सत्कार नहीं होता वह सब क्रिया निष्फल जाती हैं : २ ॥ जिस घर वा कुल में त्री लोग शोकानुर होकर 1 दुख पाती हैंवह कुल शनि नष्ट भ्रष्ट होजाता है और जिस घर व कुल में स्त्री । , से में हुई रहती हैं वह कुल सर्वद्या बढ़ा ? लोग आनन्द उत्सठ आर प्रसन्नता भर रहता है । २ है। इसलिये ऐश्वर्य की कामना करनेहारे मनुष्यों को योग्य है कि ! सत्कार कौर उत्सव के समय में भूपण वस्त्र और भोजनादि से स्त्रियों का नित्यप्रति संस्कार करें : ४ 1 यह बात सदा ध्यान में रखनी चाहिये कि ‘‘ज' शब्द का ' अर्थ सत्कार है और दिन रात में जब २ प्रथम मिलें या पृथक् हों तब २ प्रीति \ पूर्वक tyनमस्से’' एक दूसरे से करें !!