पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/११०

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34 का काम कर - ए - चतुर्थ सेमुल्लास: !! ६७ सद प्रथा समय दहक।यटु ददया । सुस्तीपस्करया चामुक्तस्तया ॥ मनु- 4, 1 १५० !। भ्री को योग्य है कि अति प्रसन्नता से घर के कामों मे चतुराईयुक्त सब पदार्थों । के उत्तम संस्कार तथा बर की शुद्धि रखे और यय में आस्यन्त उदार न रहे। अर्थी यथायोग्य व ई करे और सब चीजें पवित्र और पाक इस प्रकार बनाने जो ओपधिम्दप होकर शरीर व मामा से रोग को न आने देचे, जो २ व्यय हो उस का हिसाघ यथावत रखके पति आदि को सुना दिया करे घर के नौकर चाकरों. स यथा याय कtम लखे वर के किसी कार को बिगड़ने न देने !॥ लियो रलान्यथो विद्या सत्य शैवं सुभाषित। वेधानि व iशंख्पान समादेया ने सतः ॥ स० २ । २४० ॥ उत्तम बी नाना प्रकार के रन, विद्या, सत्य, पवित्रता, श्रेष्ठ भाषण और नाना . प्रकार की झिरूपविश्रा अर्थात् कारीगरी सब देश तथा सब मनुष्यों से प्रहण करे ॥ ? सयं ब्यात प्रियं ब्यान्न ब्यात् सत्यमग्रियम् । प्रय व नातूत यादेष मेः सनातः t १ । भट भद्रावत नूयादमित्व वा बदत् । शुष्कवैर विवाद च न कुल्केनचित्रसह ॥ २ ॥ म० ४ । १३८ । १३६ । सदा प्रिय सत्य दूसरे का हितकारक बोले अग्रिय सत्य अर्थात् का ये को काण न बोले, अमृत अर्थात् झूठ दूसरे को प्रसन्न करने के अर्थ न बोले : ५ ॥ सदा द्र अथोंस सब के हितकारी वचन बोल' को शुक़दंर प्रोत् बिना अपराध किसी के साथ विरोध त्रिवाद न करे , २ । ज २ दूर का हितकारी हो आiिर बुरा भी व साने तथापि कहे विना न रह । । > >