पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/११३

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- 4 से 4 - - - - ५ 8 ७ अंधकार की सन्धि भी सा : दो ही बेला में होती है जो इस को न मानकर मध्याह्न काल में तीसरी संध्या माने वह मध्यरात्रि में भी नेपासन क्यों न करें जो मध्यरात्रि में भी करना चाहे तो प्रहर २ व डी २ पल २ और क्षण २ की भी 3 सन्धि होती हैं उनमें भी मेरे पासन किया केरे जो ऐसा भी करना चाहें ता हो ही नहीं सकता और किसी शाध का ग्राह्न संeा से प्रमाण भी नहीं इसलिये दोन कालों में संध्या और अग्निहोत्र क५ना समुचित है तीसरे काल में नहीं । ? और जो तीन काल होते हैं वे भू धूस, भविष्य और बर्द्धमान के भेद से हैं संध्यो- पासन के भेद से नहीं । तीसरा ‘पितुय' अर्थात् जिसमें देव जो विद्वान ऋषि जो पढ ने पढ़ानेहारे पितर मात) पिता आदि दृढ़ इनी और प्ररभ योगियों की सेवा करनी 1 सिंत ज्ञ के दो भर दें एक श्राद्ध और दूसरा तर्षण 1 श्राद्ध अर्थात् । ‘श्रत्' सत्य का नाम है ‘‘सय दबाति या क्रि यया सा श्रद्धा औद्ध या यत् क्रियते तटाइम्' ’ जिस क्रिया से स्य का ग्रहण किया जाय उसका श्रा और जो श्रद्ध से कर्म यिा जाध उस सा न म श्रीढ़ है । और ‘ मन्ति तयनित यने पितृ तत्तर्षण१२५ जिस २ कर्म से मृत अधन विध महत गड़ता पित।दि पितर प्रसन्न हों और प्रसन्न किये जायें उसका नाम त6ण है, परन्तु यह जीचितों के लिये है। ती के लिये नहीं है। ों ब्रह्मादा देवास्तुष्यन्ताम् । ब्रह्मादिदेवपन्घस्तु- ! प्यन्ताम् । ब्रह्माददेवमुतास्तृप्यन्ताम् । ब्रह्मादिदेवगणा - ! स्तृप्यन्ताम् । इति देवतर्पणम् ॥ "बिगा७स हैि देवा " यह शतपथ ब्राह्मण का वचन है-जो विद्वान ' का दब यहन द जf रivपाह्न चार दर के जान बाल ही उनका नाम ! ा और नमे न्यून हर महंत सकी। नाम क्षेत्र अब वन विद्वान है उन सड़ । न ए (वपरी ( ।ढ़ा रही ट्रेव । ,र उनके तुरूप पुत्र और शिष्ध तथा उनके सश नई गए इन द ा तो वो करना तर्पण है। सका नाम आद्ध ऑोंर व हैं र" अथiषेत्र ॥ ों सद!दयू नहर मृतम् । सरीध्यापि-|