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१०४ सत्याप्रकाश: 11

  • न किसी एक -4

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अथ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होवे ऐसे २ उपदेशों का श्रवण करे र अपना

चाल चलन भी उनके सदुपदेशानुसार रक्खे में समय पाके स्थ और रजात्रि भी अतिथियत् सत्कार करने योग्य हैं परन्तु' पाषण्डिनो विकर्मस्या वैडालवृत्तिकान् शान् । हैतुकान् वकबूतींच वाड्माणांप नचयत् ॥ म, ४ । ३० ॥ ( पाषण्डी ) वेटनिन्दक, वेदविरुद्ध आ।चरण करनेहारे ( विक्रस्थ ) जो बेट- विरुद्ध कर्म का कत्र्ता मिलाभोपणदि युक्त जेज मे घिडाला छिप और स्थिर रहकर त।कता २ कपट से सूर्य आदि प्राणियों को मार अपना पेट भरता है वैसे जने का नाम वैडालवृत्तिक ( शठ ) अथन हठी, दुराग्रही, अभिमनीआप जानें नहीं औरों का कश्हा मानें नहीं ( हंतुक ) कुतक व्यर्थ बकनेवाले जैसे कि आजकल के वेदान्ती बकते हैं हम नह्मा और ज गन् मिथ्या है वेदादि शाछ और ईश्वर भी कल्पित है । इत्यादि गपोडे हांकनेवाले ( वकति ) जैसे बक एक पैर उठा ध्यानावस्थित के से A है । समान कर केट मच्छों क प्रण हरक अपन1 स्वार्थ सिद्ध करता हूं में आज कल के वेरगो ओर खीं आई हठरी दुग्री वद्धवधा है एम का सरकार वाण 1 मात्र से भी न करना चाहिय क्योंकि इनका सत्कार करने से ये युद्ध का पाकर ससार का अवसंयुक्त करत हूं आप तो अवनाते क काम करते ही हैं परन्तु साथ म सवक की भी अ वारस्पर्श मदाम नगर में डुबा दत हूं । इन पांच साल का फल यह है कि हाल के करने से विद्या, शिक्षा, धर्मसभ्यता नादि शुभ गुणों की वृढ़ । अग्निहान से वायु,जल की शुद्ध दाम ाट द्वारा संसार को सुख प्राप्त होना अर्थात् युद्ध वायु क अवास स्पश खान पान स आरोग्य बुद्धि बल पराक्रम बढ के धर्म, अर्थकाम और मोक्ष का अनुष्ठान पूरा होना इसीलिये इसको देवयज्ञ कहते हैं कि यह वायु आदि पदार्थों को शुद्ध कर देता है। पितृयज्ञ से जब माता पिता र ज्ञानी महामों की सेवा करेगा तत्र उसका ज्ञान बढ़ेगा उससे सयासत्य का निर्णय का असत्य रहेगा कर सस्य ग्रहण और का स्याग करके सुखी । दूसग कृतज्ञता जैसी और अचाय ने सन्लाम और शिष् अथॉन सेवा माता पिता । 1 की की है उसमका वट ला देना उचित ही है । वलिवैश्वदेव का भी फल जा पूर्व ।

क5 म ,ये वही है । जबतक उत्तम आतिथि जगत में नहीं होते तबतक उन्नति भी ,