पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१२६

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चतुर्थसमुल्लासः॥ । ये भी विदुरप्रजागर अध्याय ३९ के श्लोक हैं-( अर्थ ) ( आलम्ब ) अर्धान । शरीर और बुद्धि में जड़ता, नशा, मोह किसी वस्तु में फँसावट, चपलता और इधर उधर की व्यर्थ कथा करना सुनना, पढ़ते पढ़ाते रुक जाना, अभिमानी, अत्यागी । होना ये सात दोष विद्यार्थियों में होते हैं ॥ १॥ जो ऐसे हैं उनको विद्या भी नहीं । आती ॥ सुख भोगने की इच्छा करनेवाले को विद्या कहाँ ? और विद्या पढनेवाले को । सुख कहां ? क्योंकि विषयसुखार्थी विद्या को और विद्यार्थी विषयसुख को छोड़ दे ॥२॥' एसे किये विना विद्या कभी नहीं हो सकती और ऐसे को विद्या होती है:- सत्ये रतानां सततं दान्तानामूर्ध्वरेतसाम् । ब्रह्मचर्यं दहेद्राजन् सर्वपापान्युपासितम् ॥ जो सदा सत्याचार में प्रवृत्त, जितेन्द्रिय और जिनका वीर्य अधम्खलित कभी न हो उन्ही का ब्रह्मचर्य सञ्चा और वे ही विद्वान होते है।। इसलिये शुभ लक्षणयुग. अध्यापक और विद्यार्थियों को होना चाहिये । अध्यापक लोग ऐमा यत्न किया करे जिससे विद्यार्थी लोग मत्यवादी, मत्यमानी, मत्यकारी. मभ्यता, जितन्द्रियता, सुशीलतादि शुभगुणयुक्त शरीर और श्रात्मा का पूर्ण बल बढ़ा के ममप्र वेदादिशानों मे विद्वान् हो, सदा उनकी कुचेष्टा छुडाने में प्रोर विद्या पढ़ान में चेष्ठा किया करें। और विद्यार्थी लांग सदा जितेन्द्रिय, शान्त, पढ़नेहारो में प्रम विचारशील परिश्रमी हो- कर ऐसा पुरुषार्थ को जिममे पूर्ण विद्या. पूर्ण प्राय, परिपूर्ण धर्म और पुरणार्थ करना आजाय इत्यादि ब्राह्मण वर्णों के काम हैं । अन्त्रियों का कर्म गजधर्म : कहेंगे। वैश्यों के कर्म ब्रह्मचर्यादि से वदादि विद्या पढ़ विवाह करके देशों सीमा नाना प्रकार के व्यापार की रीत्ति उनके भाव जानना, बेगना. पटना. दीपमाला में जाना आना, लाभार्थ काम का प्रारम्भ करना पशुपारन पर तीन चतुराई से करनी करानी, धन का बढाना, विशा पार धन की उन्ननिना , सत्यवादी निष्कपटी होकर सत्यनाल लव न्यापार करना, नर जानु ऐसी करनी जिससे कोई नष्ट न होने पायदान मेला में बना .. . निपुण अतिप्रेम मे द्विजो की मेया भोर 1 . लोग इसके म्यान, पान. वर. म्यान, निशा

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"प्रथवा मासिक कर देवे पागं वो पर नि. .. ... .. ... दु.स्व, हानि, लाम में रोयगा. .. . .... .. फायर को Eritri ... :: ........: --