पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१२७

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सत्यार्थप्रकाश ॥ - पानं दुर्जनसंसर्गः पत्या च विरहोऽटनम् । स्वप्नोन्यगेहवासश्च नारीसन्दूषणानि षट् ।। मनु०६।१३॥ मद्य भांग आदि मादक द्रव्यों का पीना, दुष्ट पुरुषों का सङ्ग, पतिवियोग, । अकेली जहां तहां व्यर्थ पाखण्डी आदि के दर्शन के मिष से फिरती रहना और पराये । घर में जाके शयन करना वा वास ये छः स्त्री को दूषित करनेवाले दुर्गुण हैं। और ये पुरुषों के भी हैं। पति और स्त्री का वियोग दो प्रकार का होता है कहीं कार्यार्थ देशान्तर में जाना और दूसरा मृत्यु से वियोग होना इनमें से प्रथम का उपाय यही है कि दूर देश में यात्रार्थ जावे तो स्त्री को भी साथ रक्वे इसका प्रयोजन यह है कि बहुत समय तक वियोग न रहना चाहिये (प्रश्न ) स्त्री और पुरुष के बहुत विवाह होने योग्य हैं वा नहीं ? ( उत्तर ) युगपत् न अर्थात् एक समय में नहीं (प्रश्न) क्या समयान्तर में अनेक विवाह होने चाहिये ( उत्तर) हां जैसे- सा चेदक्षतयोनिः स्याद्गतप्रत्यागतापि वा । - पौनर्भवेन भर्ना सा पुन. संस्कारमहति ॥ मनु० ६।१७६ ॥

जिम स्त्री वा पुरुष का पाणिग्रहणमात्र संस्कार हुआ हो और संयोग न हुआ |

हो अर्थात अक्षतयोनि बी और अक्षतवीर्य पुरुष हो उनका अन्य स्त्री वा पुरुष के

साथ पुनर्विवाह होना चाहिये किन्तु ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य वर्गों में क्षतयोनि स्त्री

जत वीर्य पुरुष का पुनर्विवाह न होना चाहिये (प्रश्न) पुनर्विवाह में क्या दोष है ? (उचर ) ( पहिला ) स्त्री पुरुप में प्रेम न्यून होना क्योंकि जब चाहे तब पुरुष को स्त्री और झी को पुरुष छोडकर दूसरे के साथ मम्बन्ध करले ( दूसरा ) जव सी वा पुरुष पति वा स्त्री के मरने के पश्चात् दूसरा विवाह करना चाहे तव प्रथम स्त्री ' वा पूर्व पति के पदाथों को उझ लेजाना और उनके कुटुम्बवालों का उनसे झगड़ा फरना (नीमरा बहतसे भद्रकुल का नाम वा चिन्ह भी न रह कर उसके पदार्थ ' निम्न भिन्न होजाना ( चौधा ) पातिव्रत और स्त्रीव्रत धर्म नष्ट होना इत्यादि दोषों के अर्थ दिनों में पुनर्विवाह वा अनेक विवाह कभी न होना चाहिये (प्रश्न ) जब गयटन होजाय नय भी उसका कुल नष्ट होजायगा और स्त्री पुरुष व्यभिचागदि में Trir गर्भपाननादि यद्दत दुष्ट कर्म करेंगे इमलिये पुनर्विवाह होना अच्छा है । उत्तर नहीं २ क्योति जो स्त्री पुरुप ब्रह्मचर्य में स्थित रहना चाहै तो कोई भी नगा और जो गुन की परम्परा रम्बने के लिये किमी अपने स्त्रजाति