पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१३०

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..........tatta .mamin untukaraat चतुर्थसमुल्लासः ।। और कुकर्म के रोकने का एक यही श्रेष्ठ उपाय हैं कि जो जितेन्द्रिय रह सकें किन्तु विवाह वा नियोग भी न करें तो ठीक है परन्तु जो ऐसे नहीं हैं उनका विवाह और आपत्काल में नियोग अवश्य होना चाहियं इससे व्यभिचार का न्यून होना प्रेम से उत्तम सन्तान होकर मनुष्यों की वृद्धि होना सम्भव है और गर्भहत्या नर्वथा छूट जाती है । नीच पुरुषों से उत्तम स्त्री और वेश्यादि नीच स्त्रियों से उत्तम पुरुषों का व्यभिचाररूप कुकर्म, उत्तम कुल में कलंक, वंश का उच्छेद, स्त्री पुरुषों को सन्तार और गर्भहत्यादि कुकर्म विवाह और नियोग से निवृत्त होते हैं इसलिये नियोग करना चाहिये ( प्रश्न ) नियोग में क्या २ बात होनी चाहिये ? (उत्तर) जैसे प्रसिद्धि से विवाह, वैसे ही प्रसिद्धि से नियोग, जिस प्रकार विवाह में भद्र पुरुषों की अनुमति और कन्या वर की प्रसन्नता होती है वैसे नियोग में भी अर्थात् जब स्त्री पुरुष का नियोग होना हो तब अपने कुटुम्ब में पुरुष स्त्रियों के सामने प्रकट करें कि हम दोनो नियोग सन्तानोत्पत्ति के लिये करते हैं जब नियोग का नियम पूरा होगा तब हम सयोग न करेंगे जो अन्यथा करे तो पापी और जाति वा राज्य के दण्डनीय हों। महीने में एकवार गर्भाधान का काम करेंगे, गर्भ रहे पश्चात् एक- • वर्ष पर्यन्त पृथक् रहेंगे ( प्रश्न ) नियोग अपने वर्ण में होना चाहिये वा अन्य वणों के साथ भी ? ( उत्तर ) अपने वर्ण मे वा अपने से उत्तम वर्णस्थ पुरुष के साथ अर्थात् वैश्या स्त्री वैश्य क्षत्रिय और ब्राह्मण के साथ क्षत्रिया क्षत्रिय और ब्राह्मण के साथ ब्राह्मणी ब्राह्मण के साथ नियोग कर सकती है । इसका तात्पर्य यह है कि वीर्य सम वा उत्तम वर्ण का चाहिये अपने से नीचे के वर्ण का नहीं। स्त्री और पुरुष की स्मृष्टि का यही प्रयोजन है कि धर्म से अर्थात्, वेदोक्त रीति से विवाह वा. । नियोग से, सन्तानोत्पत्ति करना ( प्रश्न ) पुरुष को नियोग करने की क्या आवश्य- कता है क्योकि वह दूसरा विवाह करेगा ? ( उत्तर ) हम लिख आये हैं द्विजों में स्त्री और पुरुष का एक ही वार विवाह होना वेदादि शास्त्रों में लिखा है द्वितीय बार नहीं कुमार और कुमारी का ही विवाह होने मे न्याय और विधवा स्त्री के साथ कुमार पुरुष और कुमारी स्त्री के साथ मृतस्त्रीक पुरुष के विवाह होने में अन्याय अर्थात् अधर्म है । जैसे विधवा स्त्री के साथ पुरुष विवाह नहीं किया चाहता वैसे ही विवाहित अर्थात् स्त्री से समागम किये हुए पुरुप के साथ विवाह करने की इच्छा । कुमारी भी न करेगी । जब विवाह किये हुए पुरुष को कोई कुमारी कन्या और विधवा स्त्री का ग्रहण कोई कुमार पुरुष न करेगा तब पुरुष और स्त्री को नियोग