पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१३४

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चतुर्थममुल्लारा ॥ अन्यमिच्छस्व सुभगे पति मत् ॥ ०म० १० स० १०।मं० १०॥ जब पति सन्तानोत्पत्ति में असमर्थ होवे तब अपनी स्त्री को आज्ञा देवे कि : हे सुभगे ! सौभाग्य की इच्छा करनेहारी स्त्री तू ( मत् ) मुझ से ( अन्यम् ) दूसरे पति की ( इच्छस्व ) इच्छा कर क्योंकि अब मुझ से सन्तानोत्पत्ति न हो सकेगी। तब वी दूसरे से नियोग करके सन्तानोत्पत्ति कर परन्तु उस विवाहित : महाशय पति की सेवा में तत्पर रहे वैसे ही स्त्री भी जब रोगादि दोषों से ग्रस्त , होकर सन्तानोत्पत्ति में असमर्थ होवे तब अपने पति को आज्ञा देवे कि हे स्वामी श्राप सन्तानोत्पत्ति की इच्छा मुझ से छोड़ के किसी दूसरी विधवा स्त्री से नियोग । करके सन्तानोत्पत्ति कीजिये । जैसा कि पाण्डु राजा की स्त्री कुन्ती और माद्री : आदि ने किया और जैसा व्यासजी ने चित्राङ्गद और विचित्रवीर्य के मरजाने ! पश्चात् उन अपने भाइयों की खियो से नियोग करके अम्बिका अम्बा में धृतराष्ट्र और अम्बालिका में पाण्डु और दासी में विदुर की उत्पत्ति की इत्यादि इतिहास भी इस बात में प्रमाण हैं | प्रोषितो धर्मकार्यार्थ प्रतीक्ष्योऽष्टौ नरः समाः । विद्यार्थं षड़ यशोर्थं वा कामार्थं त्रीस्तु वत्सरान् ॥ १॥ . बन्ध्याष्टमेऽधिवेद्याब्दे दशमे तु सृतप्रजा। एकादशेस्त्रीजननी सद्यस्त्वप्रियवादिनी।२। मनु०६।७६।८१॥ विवाहित वी जो विवाहित पति धर्म के अर्थ परदेश में गया हो तो पाठ वर्ष, विद्या और कीर्ति के लिये गया हो तो छ• और धनादि कामनाके लिये गया हो तो | तीन वर्ष तक बाट देख के पश्चात् नियोग करके सन्तानोत्पत्ति करले. जब विवाहित पति आवे तब नियुक्त पति छूट जावे ॥ १॥ वैसे ही पुरुप के लिये भी नियम है कि वन्ध्या हो तो आठवें ( विवाह से आठ वर्पतक स्त्री को गर्भ न रहे ), मन्तान हो. कर मरजावे तो दशवें, जव २ हो तब २ कन्या ही होवें पुत्र न हो नो न्यारहवें वयं- तक और जो अप्रिय बोलनेवाली हो नो सद्य उम बी को छोट दुर्गनी से नियोग करके सन्तानोत्पत्ति कर लेवे ॥२॥ वैसे ही जो पुरुप "पत्यन्त दुमदायक हो तो खी को उचित है कि उसको छोड के दूसरे पुरुप नियोग कर सन्नानोत्पनि कर के उसी विवाहित पति के दायभागी सन्तान पर थे। इत्यादि प्रगानीर । युक्तियों मे स्वयंवर सिाह पार नियोग ने अपने बानी