पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१३६

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re . ... चतर्थसमुल्लासः ॥ १२२ । । (उत्तर ) इसका प्रत्युत्तर नियोग विषय मे दे चुके है । और गर्भवती स्त्री मे एक । वर्ष समागम न करने के समय में पुरुष मे वा दीर्घरोगी पुरुष की स्त्री से न रहा । जाय तो किसी से नियोग करके उसके लिये पुत्रोत्पत्ति करदे, परन्तु वेश्या- गमन वा व्यभिचार कभी न करे । जहातक हो वहातक अप्राप्त वस्तु की इच्छा,

प्राप्त का रक्षण और रक्षित की वृद्धि, बढ़े हुए धन का व्यय देशोपकार करने में

किया करें, सब प्रकार के अर्थात् पूर्वोक्त रीति से अपने २ वर्णाश्रम के व्यवहारो को अत्युत्साहपूर्वक प्रयत्न से तन, मन, धन से सर्वदा परमार्थ किया करें । अपने ' माता, पिता, शाशु, श्वशुर की अत्यन्त शुश्रूपा करें, मित्र और अड़ोसी, पड़ोसी, राजा, विद्वान, वैद्य और सत्पुरुषों से प्रीति रख के और जो दुष्ट अधर्मी हैं उनसे ' उपेक्षा अर्थात् द्रोह छोड़कर उनके सुधारने का यत्र किया करे । अहातक बने वहां तक प्रेम से अपने सन्तानों के विद्वान् और सुशिक्षा करने कराने मे धनादि पदार्थों का व्यय करके उनको पूर्ण विद्वान् सुशिक्षायुक्त कर दें और धर्मयुक्त व्यवहार कर के मोक्ष का भी साधन किया करें कि जिसकी प्राप्ति से परमानन्द भागे और ऐसे ऐसे श्लोकों को न मानें जैसे:--- पतितोपि द्विजः श्रेष्ठो न च शूद्रो जितेन्द्रियः । निर्दुग्धा चापि गौः पूज्या न च दुग्धवती खरी ॥ अश्वालम्भं गवालम्सं संन्यासं पलपैत्रिकम् । देवराञ्च सुतोत्पत्ति कलौ पञ्च विवर्जयेत् ॥ नष्टे मृते प्रव्रजिते क्लीवे च पतिते पतौ।। पञ्चस्वापत्सु नारीणां पतिरन्यो विधीयते ॥ ये कपोलकल्पित पाराशरी के श्लोक हैं। जो दुष्ट कर्मचारी द्विज को बेष्ट पोर श्रेष्ठ कर्मकारी शूद्र को नीच माने तो इससे परे पजपात अन्याय, 'प्रधम मा - धिक क्या होगा ? क्या दृध देनेवाली वा न देनेवाली गाय गोपालों को पालनाय होती हैं वैसे कुम्हार आदि को गवही पाल य नहीं होनी और यह प्रान्त भी । विषम है क्योकि द्विज और गृह मनुष्य जाति, गाय और गधी भिन्न जानि है रथ. श्चित् पशु जाति से दृष्टान्त का एक देश दाधीन में गिर भी नई नीम ! आशय अयुक्त होने से यह शोक विद्वानों 7 माननीय मीना मरने ,