पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१३७

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सत्यार्थप्रकाश, जव अश्वालम्भ अर्थात् चोडे को मार के अथवा गवालम्भ गाय को मार के | होम करना ही वेदविहित नहीं है तो उसका कलियुग में निषेध करना वेदविरुद्ध । क्यों नही ? जो कलियुग में इस नीच कर्म का निषेध माना जाय तो त्रेता आदि मे विधि आजाय तो इसमे ऐस दुष्ट काम का श्रेष्ठ युग में होना सर्वथा असंभव है और सन्यास की वेदादि शास्त्रों मे विधि है उसका निषेध करना निर्मल है जब मांस का निषेध है तो सर्वदा ही निषेध है जब देवर से पुत्रोत्पत्ति करना वेदों में लिखा है तो इस श्लोक का कर्ता क्यों भूमता है ? ॥ २ ॥ - यदि ( नष्टे ) अर्थात् पति किसी देश देशान्तर को चला गया हो घर में स्त्री 'नियोग कर लेवे उसी समय विवाहित पति आजाय तो वह किस की स्त्री हो ? , कोई कहे कि विवाहित पत्ति की, हमने माना परन्तु ऐसी व्यवस्था पारागरी में तो नहीं लिखी । क्या स्त्री के पाच ही आपत्काल हैं जो रोगी पडा हो वा लड़ाई हो- गई हो इत्यादि आपत्काल पांच से भी अधिक है इसलिये ऐसे ऐसे श्लोको को । कभी न मानना चाहिये ॥ ३॥ (प्रश्न ) क्योंजी तुम पराशर मुनि के वचन को

भी नहीं मानते ? (उत्तर } चाहें किसी का वचन हो परन्तु वेदविरुद्ध होने से

नही मानते और यह तो पराशर का वचन भी नहीं है क्योकि जैसे "ब्रह्मोवाच, वशिष्ठ उवाच, राम उवाच, शिव उवाच, विष्णुरुवाच देव्युवाच" इत्यादि श्रेष्टों का नाम लिख के ग्रन्थरचना इसलिय करते हैं कि सर्वमान्य के नाम से इन ग्रन्थी को सब संसार मान लेवे और हमारी पुष्कल जीविका भी हो । इसलिये अनर्थ गाथायुक्त ग्रन्थ बनाते है कुछ २ प्रक्षिप्त श्लोको को छोड़ के मनुस्मृति ही वेदानुकूल है अन्य स्मृति नहीं । ऐसे ही अन्य जालग्रन्थों की व्यवस्था समझलो ( प्रश्न ) ' गृहाश्रम सब से छोटा वा बडा है ? ( उत्तर ) अपने अपने कर्त्तव्यकों में सब वहे हैं परन्तुः-- यथा नदीनदाः सर्वे सागरे यान्ति संस्थितिम् । तथैवाश्रमिणः सर्वे गृहस्थे यान्ति संस्थितिम् ॥ १ ॥ मनु०६ । ६० ॥ यथा वायुं समाश्रित्य वर्तन्त सर्वजन्तवः । तथा गृहस्थमाश्रित्य वर्तन्ते सर्व आश्रमाः ॥ २॥ . . . . ..........