पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१६१

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पसमुलाः i १४९ हैि । व्यसनस्य च मृश्योश्व व्यसन कष्टमुच्यते । व्यसन्यधSधो ब्रजति स्वर्यात्यव्यसनी मतः ॥ ११ ॥ म० ७ । ४३-५३ ॥ राजा और राजसभा के सभासद् तब हो सकते है कि जब वे चारों वेदों की कपासना ज्ञान विद्याओं के जाननवाल से तीनों विद्या सनातन दण्डनीति न्याय- 4 - > > > विद्या अमावा अथात् परमात्मा के गुण कम स्वभावरूप का यथावत् जामनरूप ब्रह ' विद्या और लोक से वार्ताओं का आरम्भ ( कहना और पूछना ) सीखकर सभास व सभापति होसके ॥ १ ॥ सब सभास और सभापति इन्द्रियों को जीत अपने बश ( में रख के सदा धर्म में वर्दी और अधर्म से हटे हटाए रहें । इसलिये रात दिन नियत है समय मे योगाभ्यास भी करते रहें क्योंकि जो जितेन्द्रिय हो अपनी इन्द्रियों (जो मन, प्राण और शरीर प्रजा है इस ) को न जीत ले तो बाहर की प्रजा को अपने वर में स्थापन करने को समर्थ कभी नहीं हो सकता ॥ २ ॥ दृढ़।त्साही होकर जो काम से देश और क्रोध से अठ दुष्ट व्यसन के जिनमें फंसा हुआ मनुष्य कi नता से निकल सके उनको प्रयत्न से छोड और छुड़ा देवे ॥ ३ ॥ क्योंकि जो राजा कम से उत्पन्न हुए देश दुष्ट व्यसनों में फंसता दें वह अ थे अथत् राज्य बनाiदें और धर्म से रहित होजाता है और जो क्रोध से उत्पन्न हुए छाठ बुरे व्यसनों में फंसता है वह शरीर से भी रहित होजाता है ॥ ४ ॥ काम से उत्पन्न हुए यसन गिनाते हैं देखो- मृगया खेलना ( अक्ष ) अर्थात् चौपड़ खेलना, जुआ खेलनादि, दिन में सोना, कामकथा वा दूसरे की निन्दा किया करना, वियों का अति संग? 1 मादकद्रव्य अत् मद्य, अफीम, भांग, गांजा, चरस आदि का सेवन, गाना, यजा- ना, नाचना व नाच करना सुनना और देखना, था इधर उधर घूमते रहना ये दुश कामोत्पन्न व्यय तन हैं : ५ ॥ क्रोध से उत्पन्न व्यसनो को गिनाते हैं- पेंशुन्यम्' ' । अर्थात् चुगली करना, विना विचारे बलात्कार से किसी की ली से बुरा काम करना, ' द्रोह रखना, ईख्य अथो दूसरे की बड़ाई वा उन्नति देख कर जला करना, ‘‘अमृया। दोषों में गुणगुणों में दोषारोपण करना, ‘‘अर्थदूषण’ अर्थात् अधगंयुक्त बुरे कामो } में धनादि का व्यय करना, कठोर वचन बोलना और वि ना अपराध का वचन वा विशेष दण्ड देना ये आठ दुर्गुण क्रोध से उत्पन्न होते हैं ॥ ६ ॥ जो सत्र विद्वान लोग काम और क्रोधजों का मूल जानवे हैं कि जिससे ये सच दुग्ण मनुष्य को प्राप्त - !

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