पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१६२

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१७० सत्यवेका: । A २५ 3 - V ' होते हैं उस लोभ को प्रयन से छोड़े ॥ ७ ॥ काम के व्यसनों में बड़े दुर्गुण एक मद्यादि अर्थात् सहकारक द्रव्यों का सेवनदूसरा पासों आदि से जुआ खेलना, 1 तीसरा विों का विशेष सलू, चौथा मृगया खेलना ये चार महादुष्ट व्यसन हैंn ८॥ और क्रोधजों में बिना अपराध दण्ड देना, कठोर वचन वोलना और धनादि का अ- न्याय में खर्च करना ये तीन क्रोध से उत्पन्न हुए बड़े दु खायक दोप हैं ॥ ९ ॥ जो ये ७ दुर्गुण दोनों कामज और क्रोधज दो से गिने है इनमें से पूर्व २ अर्थात् व्यर्थ व्यय से कठोर व चन, कठोर वच म से अन्याय, अन्याय से दण्ड देना, इस ' स मग या खेल ता, इससे वियों का अत्यन्त संगइससे जुआा अर्थात् गृत करना और इससे भी मद्य।दि सेवन करना वड़ दुष्ट व्यसन है : १० ॥ इसमें यहू नि श्चय है कि दुष्ट व्यसन में फंसने से मरजाना अच्छा है क्योकि जो दुष्टाचारी पुरुष है वह अधिक जियेगा तो अधिक २ पाप करके नीच २ गति अर्थात् अधिक २ दु:ख को प्राप्त होता जयगा और जो किसी व्यसम में नहीं फंसा वह मर भी जा ! यगा तो भी सुख को प्राप्त होता जायगा इसलिये विशेष राजा और सब मनुष्यों को उचित है कि कभी मृगया और मद्यपानादि दुष्ट कामों में न फंसे और दुष्ट व्यसनों से पृथ होकर धर्मयुक्क गु ग कर्म स्वभावों में सट्टा वर्दी के अच्छे २ काम किया कर

॥ ११ ॥ राजसभासद और मंत्री से होने चाहिये.

मौलान् शास्त्रविदः रॉलब्ध क्षान् कुले।ढगतान् । सचित्रान्सत चाट व प्रकृत परीक्षिता ॥ १ ॥ } आप यत्सुकर कम तदर्पोकेन 'दुष्कर। विशषतोSसहायेन किन्तु राज्य महोदय ॥ २ । हैः सार्द्ध चन्तयांन्य सामान्य सन्धिविशहम् । स्थान समुद० गुiसे लधग्रशमनानि च : ३ ॥ P तषा स्त्र स्वाभप्रमुएलभ्य द्थ य ! 1 समस्तानाख्व कार्बाधु विदध्याद्वितात्मनः 11 ४ ॥ श्रन्यानपि प्रकुत शुचर ग्र।ज्ञ!नवस्थितान्। ) सम्यग५समाहर्त्तनमात्यन्सुपरीक्षितान t , ॥