पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१६३

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पठसमुल्लास: । १५१ नवत्ततास्य यावादiरत कर्तव्यता है । तात्रतsतन्द्रितान् दक्षान् कुवत विचक्षणा ॥ ६ ॥ तषामथ नजात शून् दक्ष कुलदुगतान। शुचीनाकरकमन्ते भीरूनन्तर्निवेशने ॥ ७ ॥ दूत चंव कुति सवारूकावशारद । इड़िताकारचेष्ट शुचूि दक्ष कुलाटतम ॥ ८ ॥ अनुरक्त: शुचिदेतः स्मृतिमान् देशकालवित् । वपूमान्वतभवोर दूत राः प्रशस्यत ॥ & ॥ म० ७ । ५४-५७ । ६०-६४ ॥ - स्वरथ्य स्वदेश में उत्पन्न हुए, बाद शास्त्रों के जाननेवाले, शूरवीर, जिनका लक्ष्य अर्थात् विचार निष्फल न हो और कुलीन, अच्छे प्रकार सुपरीक्षितसात व । आठ उत्तम ‘’अथत् करे धार्मिक चतुर ‘सचिवान्' मन्त्री : १ ॥ क्योंकि विशेष

सहाय के विना जो सुगम कर्म है वह भी एक के करने में कठिन होजाता है जब
  • है तो मन् एक से कैसे हो सकता है ? इसलिये एक को राजा

एसा राज्य कमें । और एक की युद्ध पर राज्य के कार्य का निर्भर रखना बहुत ही बुरा काम है म कुशछ ॥ २ ॥ इससे सभापति को उचित है कि नित्यप्रति उन राज्यकों विद्वान मन्त्रियों के साथ सामान्य करके किसी से ( सन्धि ) मित्रता किसी से (विग्रह ) विरोध ( स्थान ) स्थिति स मय को देख के चुपचाप रहना अपने राज्य की रक्षा करके बैठे रहना ( समुदाय ) जब अपना उदय अर्थात् दृद्वि हो तब दुष्ट शत्रु पर चढ़ाई करना ( गुप्ति ) मूल राजसेना कोश आदि की रक्षा ( लब्धप्रशमनानि )

जो २ देश प्राप्त हों उस २ में शान्तिस्थापन उपद्रवरहित करना इन छः गुर्गों का

विचार नित्यप्रति किय। करें ।। ३ ॥ विचार से करना कि उन सभासदों का पृथक् २ ' अपना २ विचार और अभिप्राय को सुनकर बहुपक्षानुसार कईयों में जो कार्य अपना ' ' आन्थ भी और अन्य का हितकारक ां वद करने लगना !I A पवित्रात्मा, बुद्धि मान्, निश्चितबुद्धि, दार्थों के समूह करने में अतिचतुर, सुपरीक्षित मन्त्री करे ॥ ५ ॥ जितने मनुष्यों के कार्य सिद्ध होसकें उतने आलस्यरहित बलवान और -->