पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१६४

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१५२ सत्यार्थप्रकाशः ॥ बड़े २ चंद्र प्रधान पुरुषों को अधिकारी अर्थात् नौकर करे ॥ ६ ॥ इनके अधीन शूरवीर बलवान् कुलोत्पन्न पवित्र भ्रयों को बड़े २ कमें में और भी डर- नेवालों को भीतर के कमरे में नियुक्त करे ॥ ७ ने जो प्रशसित कुल में उपन्न | चतुर, पवित्र, हावभाव और चेष्टा से भीतर हृदय और भविष्य में होनेवाली बात को जाननेहात सब शास्त्रों से विशारद चतुर है, उस दूत को भी रखे ॥ ८ ॥ ? वह ऐसा हो कि राजकाम में अयन्त उत्साह प्रीतियुक्त, निष्कपटी, पवित्रात्मा, १ चतुर बहुत समय की बात को भी न भूलनेवाला, देश और कालानुकूल वर्त्तमान का कतों सुन्दर रू५युक्त, निर्भय और बड़ा बक्ता हो वही राजा का दूत होने में प्रशस्त है : ९ ॥ किस २ को यया २ अधिकार देना योग्य हैः ए अमात्य दण्ड चायत दण्डे वैनांय किया । नृपत कशराष्ट्र च दूते सन्धिविपर्ययो ॥ १ ॥ इत एव iह सधत भनत्यब च सहतान् । तस्तकुरुते कमें भिद्यन्ते येन व न व ।॥ २ ॥ बुध्बा च सवं तरवन परराजचिकीर्षितम्। तथा प्रयत्नमातिष्ठयथात्मान न पीडचेत् ॥ ३ ॥ धनुदुग वाक्षमव वा महीदुर्गमब्दुर्ग । दुर्ग गिरिदुर्ग वा समानित्य बसेपुरम् ॥ ४ । } एक शर्त योधयाति प्राकारस्यो धनुर्धर। शढ़ दश सहस्त्राणि तस्मादुदुर्ग विधायते ॥ ५ ॥ तस्यादाध्वसम्पन्न धनधान्यन वाहन: । ब्राह्मणेः शिल्पिाभियन्र्यवसेनोद केन च ॥ ६ ॥ तस्य मध्य सुपयात कारपट्टहमान। गुप्त सर्वक शुभ जलक्ष समन्वितम ॥ ७ ॥ तदध्यस्ढहाया सवण दiन्वता । ' कले महति सम्भूत हृयां रूपशुणान्विताप ॥ ८ ॥