पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१६८

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१५६ सत्याशि. !! प्रहार से पीडा को प्राप्त हुए. न दु:खी, न अत्यन्त घायल, न डरे हुए ौर न पला - i यन करते हुए पुरुष को, सत्पुरुषों के धर्म का स्मरण करते हुए योद्धा लोग कभी मारे किन्तु उनको पकडू के जो अच्छे हों वदीगृह में रखदे और भोजन आच्छा दन यथावत् देवे और घायल हुए हो उनकी औष वादि विधिपूर्वक करे उनको न चिड़ावे न दुःख देवे जो उनके योग्य काम हो करवे विशेष इस पर ध्य न रक्खे कि य, बालक, वृद्ध और आतुर तथा शोकयुक्क पुरुषों पर शन कभी न चलावे उनके लड़के वालों को अपने सन्तानव पाल अर स्त्रियों को भी पाले उन- : को अपनी बहिन और कन्या के समान सम कभी विष यासक की दृष्टि से भी न देखे जव राज्य अच्छे प्रकार जसजाय और जिनमें पुन: २ युद्ध करने की शंका न हां उनको सकारपूर्वक छोड़कर अपने ९ बंर वा द t ज़ देव और जिनस है | भविष्यत् काल में विघ्न होना सभव हो उसको सदा कारागार में रखे : ८ 1 ; और जो पलायन अत् भागे और डरा हुआ। थ्रन्य शत्रुओं से माराजाय वह उड म’ में स्वामी के अपराध को प्राप्त होकर दण्डनीय होने / ई } और जो उसकी तिष्ठा है । जिससे इस लोक और परलांक में सुख हवाला था उसको उसका स्वामी व लत ! है जो भाग हुआ मारा जाय उसको कुछ भी सुख नहीं होता उसका पुण्यफल सब नष्ट होजाता और उस प्रतिष्ठा को वह प्राप्त हो कि सने धर्म से यथावत् युद्ध किया हो ॥ १० : इस व्यवस्था को कभी न तोड़े कि जो २ लड़ाई में जिस जिस नृत्य ! या अध्यक्ष ने , , हाथी, छन, वन धान्य, गाय आदि पशु और बियां तथा रथबड़े न्य प्रकार के सव द्रव्य और घी, तेल आदि के कुप्पे जीते हो वही उस उसका ग्रहण करे ॥ ११ ॥ परन्तु सेनास्थ जन भी उन जीते हुए पदार्थों से से सोल- ? व भाग राजा को देव पर राजा भी सेनास्थ योद्धाओं को उस धन में से जा बने मिल के जीता हो सोलहवां भाग देखे । और जो कोई - युद्ध में मर गया है। म, बी और सन्तान को उसका भाग देखे और उसकी बी तथा असमर्थ लड़कों का यथावन् पालन करे जब उसके लड़के समर्थ होजर्वे तब उनका य अधिकार जो देवे काद अपने राज्य की वृद्धि, प्रतिष्ठा, विजय और आनन्दृद्धि का ! छा रखता हो वह इसे समर्यादा का उलन कभी न करे 15 १२ ॥ अतर्ज चैव तिगत लव रक्षेत्प्रयत्नतः । रनितं बर्खयेचेष वृद्भ पात्र निक्षिपद्र f ॥ १ ॥