पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१७

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स इन्द्रस्स कालाग्निस्स चन्द्रमाः ॥ ७ ॥ कैवल्य उपनिषत्॥

इन्द्रं॑ मि॒त्रं वरु॑णम॒ग्निमा॑हु॒रथो॑ द्वि॒व्यस्स सु॑प॒र्णो ग॒रुत्मा॑न् ।

एकं॒ सद्विप्रा॑ बहुधा व॑दन्त्य॒ग्निं॑ य॒मं मा॑त॒रिश्वा॑नमाहुः ॥ ८ ॥ ऋ० मं० १ । अनु० २२ । सू० १६४ । मं० ४६ ॥

भूर॑सि॒ भूमि॑र॒स्यादि॑तिरसि वि॒श्वधा॑या॒ विश्व॑स्य॒ भुव॑नस्य ध॒र्त्री । पृ॒थि॒वीं य॑च्छ पृथि॒वीं दृ॑ᳬंह पृथि॒वीं मा हि॑ꣳसीः ॥ ९ ॥ यजु० अ० १३ । मं० १८ ॥

इन्द्रो मह्ना रोदसी पप्रथच्छव इन्द्रः सूर्य्यमरोचयत् ।

इन्द्रेव विश्वा भुवनानि येमिर इन्द्रे स्वानास इन्दवः ॥ १० ॥ सामवेद०७ । प्र० ३ । ० ८ । सू० १६ । अ० २ । खं०३ । सू० २ । म० ८ ॥

प्रा॒णाय॒ नमो॒ यस्य॒ सर्व॑मि॒दं वशे॑ ।

यो भू॒तः सर्व॑स्येश्व॒रो यस्मि॒न्त्सर्वं॒ सर्च प्र॒ति॑ष्ठितम् ॥ ११ ॥ अथर्ववेदे काण्ड ११ । अ० २ । सू० ४ । मं० १ ॥


अर्थ - यहाँ इन प्रमाणों के लिखने में तात्पर्य यही है कि जो ऐसे २ प्रमाणों में ओङ्कारादि नामों से परमात्मा का ग्रहण होता है, यह लिख आये तथा परमेश्वर का कोई भी नाम अनर्थक नहीं । जैसे लोक में दरिद्री आदि के धनपति आदि नाम होते हैं। इसमें यहू खिल हुआा कि कहीं गौणिक, कहीं कार्मिक, और कहीं स्वाभाविक अर्थों के वाचक हैं। "ओ३म्" आदि नाम सार्थक हैं जैसे (ओ३म् ख०) "अवतीत्योम्, आकाशमिव व्यापकत्वात् खम्, सर्वेभ्यो बृहत्वाद् ब्रह्म" रक्षा करने से (ओ३म्), आकाशवत् व्यापक होने से (खम्), सब से बड़ा होने से (ब्रह्म) ईश्वर का नाम है ।।१।। (ओ३म्) जिसका नाम है और जो कभी नष्ट नहीं होता उसी की उपासना करनी योग्य है अन्य की नहीं ।।२।। (ओमित्येत०) सब वेदादि शास्त्रों में परमेश्वर का प्रधान और निज नाम (ओ३म्) को कहा है, अन्य सब गौणिक नाम हैं ।।३।। (सर्वे वेदा०) क्योंकि सब वेद सब