पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१८५

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समुई । १३ थे। " - - -24 से यन धर्फ झधण सत्यं पत्राचतेन च । हेन्यते प्रेक्षमाणान हतास्तत्र सभासदः ॥ 8 ॥ धर्म एव हतो हन्ति धर्फ रक्षति रक्षित: । तस्माद्ध न हन्तव्यो मा नो धों हतोsवधत ॥ १० ॥ । वृषो हि भगवान् धर्मस्तस्य यः कुरुते झलम् । वृषल त विदुर्घवास्तस्माद्ध में न जोपये ॥ ११ ॥ एक एव सुहृद्धम निधनेप्यनुयातेि यः ! श्रंण समन्ना सवमन्याल गच्छतेि ॥ १२ ॥ पादधर्मस्य कत्तार पादः साक्षमृच्छाति । पादः सभासदः सर्वम् पादो राजानमृच्छति ॥ १३ ॥ राजा भवयनेनास्तु मुच्यन्ते व सभासदः । एन गच्छति कत्तोर निन्दाह यत्र निन्घते ॥ १४ ॥ मनु० ८ । ३-5 । १२-१६ । सभा राजा और राजपुरुष सब लोग देशाचार और शाबव्यवहार हेतुओो से नि . नालिखित अठारह विवादास्पद मार्गों में विवादयुक्त कर्मों का निर्णय प्रतिदिन किया करें और जो २ नियम शानोक्त न पावें और उनके होनेकी आवश्यकता जान तो उत्तमोत्तम नियम बांधे कि जिससे राजा और प्रजा की उन्नति हो ॥ १ ॥ अठारह । मार्ग ये हैं-उनमें से १ ( ऋणादान ) किसी से ऋण लेने देने का विवाद । २ ( निक्षेप ) घरावट अर्थात् किसी ने किसी के पास पदार्थ बरा हो और मगे पर न देना । ३ ( अस्वामिविक्रय ) दूसरे के पदार्थ को दूसरा बेंच लेबे । ४ ( संन्य व समुथानम् ) सिल मिला के किसी पर अत्याचार करना । ५ ( दत्तस्यानपकर्म

च ) दिये हुए पदार्थ का न देना ॥ २ ॥ ६ ( वेतनस्लैब चाद्यानम् ) वेतन अर्थात् ।

मैं किसी की ‘नौकरी में से ले लेना वा कम देना । ७ ( प्रतिज्ञा ) प्रतिज्ञा से वि- । खे बरैना । ८ ( क्रयविक्रयाशय ) अर्थात् लेन देन में झगड़ा होना ।९ पशु के खासी और पालनेवाले का तगड़ा ॥ ३ ॥ १० सीमा का विवाद । ११ किसी को !