पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१८८

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१७६ सत्यार्थ प्रकाश. ॥ - -- -- गया 27 - - - ए - मावमस्था: स्वनामान तृण साक्षिणमुत्तम ॥ १२ ॥ यस्य विद्वान् हि बदतः क्षेत्रज्ञो नाभिशढ़ते । ( तस्मान्न देवाः श्रेयांस लोकेन्ष पुरुष विदुः ॥ १३ ॥ से एको हममीयारमाने यत्वं कल्याण मयसे । । नित्य स्थितस्ते द्वेष पुण्यपापेक्षिता मुनिः ॥ १४ ॥ मनु० ८ ॥ ६३६८। ७२-०७५ ७८-८१। ८३। ८४ 1 &६ ६१ ॥ सब वर्षों में धार्मिक, विद्वान् निष्कपटीसब प्रकार धर्म को जाननेवालेलो भरहित, सत्यवादी को न्यायव्यवस्था में साक्षी करे इससे विपरीतों को कभी न करे ॥ १ ॥ स्त्रियों की साक्षी की, द्विजों के द्विज, शूद्रों के शुद्ध और अन्त्यों के अ न्य साक्षी हों ॥ २ ॥ जितने बलात्कार काम चोरी, व्यभिचार, कठोर वचन, दण्डनियत रूप अपराध हैं उनमें साक्षी की परीक्षा न करे और अत्यावश्यक भी समझे क्योंकि ये काम सब गुप्त होते हैं ।॥ ३ ॥ दोनों ओर के साक्षियों में से बहु पक्षासार, तुल्य साक्षियों में उत्तम गुणी पुरुष की साक्षी के अनुकूल और दोनों के साक्षी उत्तम गुणी और तुल्य हों तो बिजोतम अर्थात् ऋषि महर्षि और यातियों की साक्षी के अनुसार न्याय करे ॥ ४ ॥ दो प्रकार के साक्षी होना सिद्ध होता एक साक्षात् देखने और दूसरा सुनने से, जब सभा में पूछे तब जो साक्षी सत्य बोले वे घमैहीन और के योग्य न होवें और जो साक्षी मिथ्या बोलें वे यथा योग्य दण्डनीय हों ॥ ५ ॥ जो राजसभा वा किसी उत्तम पुरुषों की सभा में 4" देखने और सुनने से विरूद्ध बोले तो वह ( आबानरक ) अर्थात् जिह्वा के छेदना से दुःखरूप नरक को वर्तमान समय में प्राप्त होवे और मरे पश्चात् मुख से हीन होजाय : ६ साक्षी के उस वचन को माना कि जो स्वभाव ही से व्य सम्बन्धी बोले और इससे भिन्न सिखाये हुए जो २ वचन बोले उस २ को न्याया- वशि व्यर्थ समझे ॥ ७ ॥ जब अर्थी ( वादी ) और प्रत्यर्थी ( प्रतिवादी ) के सा ने सभा के समीप प्राप्त हुए साक्षियों को शान्तिपूर्व न्यायाधीश और प्राइविं। वक अर्थात् वकील वा वारिस्टर इस प्रकार से पूछे ॥ ८ 11 हे साक्षी लोगो ! ' कार्य में इन दोनों के परस्पर कमों में जो तुम जानते हो उसको सत्य के साथ बोला इस