पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१९०

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सत्यार्थनाश: t १७८ ने अनुबन्धे परिझाय देशकालो च तत्वतः। साराSपराधौ चालय दण्डे दण्डथेख पातपत् ॥ ६ ॥ अधमेदडन लोके यशोकीर्तिनाशूनम्। श्रवग्येंन्च परम्रापि तस्मातत्परिवर्जयेत् ॥ ॥ ७ श्रदण्ड्यान्दण्डयन् राजा दण्ड्यांश्चेवाप्यदण्डयन् । ' अयश महदामोति नरक चैव गच्छति ॥ ८ ॥ वाग्दएर्ड प्रथम कुटुद्धिग्र्ड तदनन्तरम् । तृतीय धनदण्डे तु वधदण्डमतः परम् ॥ & ॥ मनु० ८ । ११८-१२१ । १२५-१२६ ॥ जो लोभ, मोह, भय, मित्रता, काम, क्रोध, झझाम और बालकपन से साक्षी देने बहू सब मिथ्या समझी जाने ॥ ५ ॥ इन में से किसी स्थान में साक्षी झूठ बोले उसको वक्ष्यमाण अनेक विध दण्ड दिया करे ॥ २ ॥ जो लोभ से झूठी साक्षी देखे तो उससे १५la) (पन्द्रह रुपये देश आने ) दण्ड लेवेजो मोह से झूठी साक्षी देवे उससे ३) ( तीन रुपये दो आाने ) दण्ड लेवे, जो भय से मिथ्या साक्षी देखें उसे ६I) ( सवाछः रुपये ) दण्ड लेवे और जो पुरुष मित्रता से झूठी साक्षी देवे उससे १२) ( रुपये ) दण्ड लेवे ॥ ३ ॥ जो पुरुष कामना से साढ़बार६ साक्षी देवे उसे २५) ( पचीस रुपये ) दण्ड लेवे, जो पुरुष क्रोध से झूठी साक्षी देवे उसे ४६ls) ( छयालीस रुपये चौदह आने ) दण्ड लेवे, जो पुरुष अता नता से प्रेट्री साक्षी देखे उससे ६) ( छः रुपये ) दण्ड लेवे और जो बालकपत मियत साक्षी देखे तो उससे १) ( एफ रुपया नौ आने ) दण्ड लेवे 1 है ! तृण्ड के पवेन्द्रिय, उदर, जिता, , पगआंखनाक, कानधन और देह य सरा स्थान हैं कि जिन पर इण्ड दिया जाता है ॥ ५ ॥ परन्तु जो २ दण्ड लिखा है और लिगे जैसे लोभ से सी देने में पन्द्रह रुपये दस आने दण्ड लिखा है । पर जो भयन्त निर्थ हो तो उस से कम और बनाव हो तो उससे दून तिगुना ऑर्डर गुना तक भी के क्षेत्र म् है मड़ देश, जैसा काल और जैसा पुरुष को उसका जैसा व पर ही बैसाहु ण्ड रे।६.1 फयों इस सार में जो अधर्म से दण्ड करना है वह मिथ्या