पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१९३

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- - पी -5 को को अपराध में प्रजापुरुषों से अधिक दण्ड होना चाहिये ॥ ३ ॥ और वैसे ही जो कुछ विवेकी होकर चोरी करे उस शूद्र को चोरी से आठ गुणावैश्य को सोलह गुणाक्षत्रिय को बीस गुणा ॥४ ॥ ब्राह्माण को चौसठगुणा वा सौ गुणा अथवा 1 एकसौ अट्ठाईस गुणा होना चाहिये अर्थात् जिसका जितना ज्ञान और जितनी प्र - , तिष्ठा अधिक हो उसको अपराध में उतना ही अधिक दण्ड होना चाहिये ॥ ५ ॥ राज्य के अधिकारी धर्म और ऐश्वर्य की इच्छा करनेवाला राजा बलात्कार काम करनेवाले डाकुओं को दण्ड देने में एक क्षण भी देर न करे ॥ ६ ॥ साहसिक पुरुष का लक्षण जो दुष्ट वचन बोलनेचोरी करनेविना अपराध से दण्ड देनेवाले से भी साहस चलात्कार काम करनेवाला है वह अतीव पाषी दुष्ट है ॥ ७ ॥ जो राजा साहस में वर्तमान पुरुष को न दण्ड देकर सन करता है वह शीघ्र ही नाश को 1 है और राज्य में है ८ न न धन भत द्वप उठत होता ॥ ॥ मित्रता और पुध्द की प्राप्ति से भी राजा सब प्राणियों को दु:ख देनेवाले साहसिक मनुष्य को बंधन छेदन किये बिना कभी छोड़े ॥ है । चाहे गुरु हो, चाहे पुत्रादि बाल के हों चाहे। पिता आदि , चाहे ब्राह्मण और चाहे बहुत शास्त्र आदि का पता क्यों न हो जो धर्म को छोड़ अधर्म में वर्त्तमान दूसरे को विना अपराध मारनेवाले हैं और विना विचारे मारडालना अर्थात् मार के पश्चात् विचार करना चाहिये । १० ॥ | मार =' दुष्ट पुरुषों के मारने म न्ता को पाप नहीं होता चाहे प्रसिद्ध वादे अप्रासद्ध

  • 3 क्योंकि , क्रोधी को क्रोध से मारना जानो क्रोध से क्रोध की लड़ाई है / १

इ1 : जिस राजा के राज्य में न चोर, न परस्त्रीगामी, न दुष्ट वचन का बोलनेहरा भ से साहसिक डाकू और न दण्डन अर्थात् राजा की आा।ज्ञा का भझन करनेवाला है वह राजा छतीव श्रेष्ठ है 1 १२ ॥ ई हैं।

ि मतर संघयेद्या स्त्री स्वज्ञातिगुणदर्पिता ।
ि ता श्वभिः खादयलाज जा संस्थाने बहुस्थिते ॥ १ ॥

पुमांस दाहयेपाप शयने तप्त आय से । हैं 1 अभ्यादध्युश्च काष्ठानि तत्र दवेत पापक्कृत् ॥ २ ॥

  • ' दीर्घाध्वनि यथाश यथाकालझरो भवेत् ।