पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१९५

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सपास: । १८३ बहुत बढ़कर होने लगें वह जिसको तुम सुगम दण्ड कहते हो वह फोड़ गुणा अधिक होने कोईों गुणा कठिन होता क्योंकि बहुत कर्म करेंगे से है जब मनुष्य दुष्ट तब थोड़ा दण्ड भी अर्थात् जैसे एक को मनभर २ देना पडेगा दुण्ड हुआ और दूसरे को पावभर तो पावभर 'अधिक एक मन दण्ड होता है तो प्रत्येक मनुष्य के भाग में अधपाब बीससेर दण्ड पड़ा तो ऐसे सुगम दण्ड को दुष्ट लोग क्या समझते हैं? जैसे एक को मन और सहस्त्र मनुष्यों को पाब २ दण्ड हुआ तो । ( स बाह) मन मनुष्य जाति पर दण्ड होने से अधिक और यही कड़ा तथा बहू एक | सन दण्ड न्यून और सुगम होता है । जो लम्बे मार्ग में समुद्र की खाड़ियां या ! नदी तथा घड़े नदों में जितना लम्बा देश हो उतना कर स्थापन करे और महा समुद्र में निश्चित कर स्थापन नहीं हो सकता किन्तु जैसा अनुकूल देखे कि जिस । से राजा और बड़े २ नौकाओं के समुद्र में चलानेवाले दोनों लाभयुक हों वैसी व्यवस्था करे परन्तु यह ध्यान में रखना चाहिये कि जो कहते हैं कि प्रथम जहाज नहीं चलते थे वे झूठे हैं और देश-देशान्तर द्वीप-ट्टीपान्तरों में नौका से जाने ? वाले अपने प्रजास्य पुरुषों की सर्वत्र रक्षा कर उनको किसी प्रकार का दु:ख न 1 होने देवे ॥ ३ ॥ राजा प्रतिदिन काँ की समाप्तियों को, हाथी घोड़े आदि वाहनों को नियत लाभ और खरच‘आकर' रत्नादिकों की खानें और कोष (ख़ज़ाने ) । को देखा करे ॥ ४ ॥ राजा इस प्रकार सब व्यवहारों को यथावत् समाप्त करता करता हुआ। सब पापों को छुडा के परमगति मोक्ष सुख को प्राप्त होता है : ५ ॥ ( प्रश्न ) संस्कृतविद्या में पूरी २ राजनीति है वा अधूरी है ( उत्तर ) पूरी है। क्योंकि जो २ भूगोल में राजनीति चली वaौर चलेगी वह सब सस्कृत विद्या से ली | है और जिनका प्रत्यक्ष लेख नहीं है उनके लिये: प्रत्यदे लोकढश्व शास्त्रढष्टश्व हेतुभि: ॥ मनु० ८।-३ ॥ जो नियम राजा और प्रजा के सुखकारक और धर्मयुक्क समझें उन २ नि- यमों को पूर्ण विद्वानों की राजसभा बांधा करे । परन्तु इस पर नित्य ध्यान रक्खे कि जहांतक बन सके वहांतक बाल्यावस्था में विवाह न करने देखें युवावस्था में भी विना प्रसन्नता के विवाह न करना कराना और न करने देना ब्रह्माचर्य का यथावत् सेवन करना व्यभिचार और बहुविवाद को बन्द करें कि जिससे शरीर और आ रामा में पूर्ण बल सदा रहे क्योंकि जो केवल आात्मा का बल अर्थात् विद्या ज्ञान बढ़ाये जायें और शरीर का बल न बढ़ायें तो एक ही बलवान् पुरुप ज्ञानी और