पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१९८

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१८६ सत्याग्रका: । - ( उतर) नहीं मानते, क्योंकि चार वेदों में ऐसा कहीं नहीं लिखा जिससे अनेक ईवर सिद्ध हों किन्तु यह तो लिस्या है कि ईश्वर एक है ( प्रश्न ) वे वर्षों में जो अनेक देवता लिखे हैं उसका क्या अभिप्राय है ? ( उत्तर देवता दिव्य गुणों से युक्त होने के | कारण कहते हैं जैसी कि पृथिवी, परन्तु इसको कही ईश्वर वा उपासनप्रिय नहीं माना है। ? देखो इसी सत्र म कि जिस में सब देवता स्थित हैं बह जानने और उडपासना करने में योग्य ईश्वर है, यह उनकी भूल है जो देवता शब्द से ईश्वर का ग्रहण करते हैं परसे- श्वर दवा का देश होने से महादेव इसीलिये कहता है कि वही सब जगत् की उत्पत्ति, स्थिति, प्रलयकर्ता न्यायाधीश अधिष्ठाता ‘‘नयरौिशन्निशता ०' इत्यादि वेदों में प्रमाण : है इसकी व्याख्या शतपथ में की है कि तेंतीस देव अर्थात् थिवी, जलअग्निवायु, आकाश, चन्द्रमासूर्य और नक्षत्र स व सृष्टि के निवासस्थान होने से ये पाठ । , अपए, अपनयान, उद्यान, स मान, नाग, स्में, कृकल, देवदत्त, धनजय आर ! जीवा ये ग्यारह रुद्र इसलिये कहते हैं कि जन शरीर को छोडते हैं तव न करानवाल ! 3 हारे हैं। से वत्सर के बार सने बारह आदित्य इसलिये हैं कि ये सब की आयु को प्र लत जाते हैं 1 बिजुली का नाम इन्द्र इस हेतु से है कि परम ऐश्वर्य का हेतु है। कt प्रज iतें कहने का कारण यह है कि के जि म से वायु दृष्टि जल औषधी की युद्ध विद्रों का स्कोर और नाना प्रकार की शिल्पविद्या से प्रजा का पालन होता है। ये ततस पूवाहे गुणों के योग से देव कहते हैं । इनका स्वामी और स से ब। होने से परमात्मा पततीसवा पास्यदेव शतपथ के चौदहवें काण्ड में स्पष्ट लिखा इमी ार अन्यत्र भी लिखा है जो ये इन छात्रों को वेदों खत तो में अनेक ईश्वर मानने माल में गिन कर क्यों वहत 11 १ 11 के मध्य जो इस संसार ! कुछ में जगन् है उस चमें व्याप्त होकर नियन्ता । है यह है उससे डर कर ईश्वर कहता तू अन्याय से डिसस के धन की आक्षा गत कर इस अन्याय का त्याग और न्यायाचरण रूप धर्म अपने नाम से आनन्द को भोग 11 २ 11 ईवर सब का उपदेश करता स है कि दे तो ! में ६र मय के पूर्व वित्रम सब जगत का पति हूं मैं सनातन उग- k 10 ग्रiर में कोई दो राय करनेवाला और दान, द्र मुग , क सब जीब से किता से मात ,रने में हाई वें सत्र को सु वे हारे जगन के लिये नाना कrर ।। ा 13 में र १ ने कf है !! ३ न पर मैश्वर्यावान् सूर्य के से इस गद में 41ा भी पर 17य न होता और न कभी मृत्यु %t में थे। के Af tत में ही गोत्रूप में निर्माता उत्पत्ति हैं कई इ म, जगन् द M करने !