पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१९९

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वाले मुझ ही को जानो, हे जीबो ! ऐश्वर्य प्राप्ति के यत्न करते हुए तुम लोग। 1 विज्ञानादि धन को मुझ से मांगी और तुम लोग मेरी मित्रता से अलग मत हो, ' हे मनुष्यो ! में सत्यभाषणरूप स्तुति करनेवाले मनुष्य को सनातन ज्ञानादि धन दता हूं में नहीं आथति बद मकश करनर आर सुरेका वह बद यथावत हिंता उस सब के ज्ञान का म बढाता में पुरुष का परक यज्ञ करनर का } फलदाता और इस विश्व गे जो कुछ है उस सत्र कार्यों का बनाने और धारण करनेवाला हें इसलिये तुम लोग मुझ को छोड़ किसी दूसरे को मेरे स्थान में मत } पूज, मत स।नो ऑोंर मत जानो ll ४ | । हिरण्यगर्भ सबकुंताप भूतस्पें जातः पतिरेक आलीत् । स दधार पृथिवीं यासूतेमाँ करेम देवाय हविां विधेम । यजु० | श्र० १३ । ४ यह यजुर्वेद का सन्न है हे मनुष्यो ! जो सृष्टि के पूर्व सब सूर्यादि तेजवाले लोकों का उत्पत्ति स्थान आधार ओर जो कुछ उत्पन्न हुआ था, है , हंग उसका स्वामी था, है और होगा बह थिवी से ले सूर्यलोक पर्यन्त सृष्टि को बना के धारण कर रहा है उस सुखस्वरूप परमात्मा ही की भक्ति जैसे हम करें वैसे तुम लोग भी करो ' ( प्रश्न ) आप ईश्वर २ करते हो परन्तु उसकी सिद्धि किस प्रकार करते हो १ ( उतर ) सघ प्रत्यक्षादि प्रस: पाँ से ( प्रश्न ) ईश्वर से प्रयक्षदि नमाण कभी नहीं घट सकते ' ( उतर ) इन्द्रियर्लसन्निपतन्न ज्ञानमयपदेश्यभव्यभिचारि व्यवसायात्मक ने प्याय० अ० १। सू० ४ प्रत्यक्षद ॥ यह गोतम महर्षिकृत न्यायदर्शन का सूत्र है-जो श्रोत्र, त्वचा, चक्षु, जिढा ब्राण और मन का शब्दस्पर्श, रूपरस, गन्धसुखडु:, सयासस्य आदि विषयों के साथ सम्बन्ध होने से ज्ञान उतन्न होता है उसको प्रत्यक्ष कहते हैं बह परन्तु निर्गुम हो । अब विचारना चाहिये कि इन्द्रियों और सम से गुणों का प्रत्यक्ष होता | है गुणी का नहीं जैसे चारो त्वचा आदि इन्द्रियों से स्पर्श, रूप, रस और गन्ध का ज्ञान होने से गुणी जो पृथिव उसका छात्मायुक मन से प्रत्यक्ष किया जाता है वैसे इस प्रत्यक्ष सृष्टि में रचना विशेप आदि ज्ञानादि गुणों के प्रत्यक्ष होने से