पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२०

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जयति प्रकाशयति स विराट्” विविध अर्थात् जो बहु प्रकार के जगत् को प्रकाशित करे, इससे विराट् नाम से परमेश्वर का ग्रहण होता है। (अञ्चु गतिपूजनयोः) अग, अगि, इण् गत्यर्थक धातु हैं इनसे “अग्नि” शब्द सिद्ध होता है। “गतेस्त्रयोऽर्थाः ज्ञानं गमनं प्राप्तिश्चेति, पूजनं नाम सत्कारः।” “योऽञ्चति, अच्यतेऽगत्यंगत्येति सोऽयमग्निः” जो ज्ञानस्वरूप, सर्वज्ञ, जानने, प्राप्त होने और पूजा करने योग्य है इससे उस परमेश्वर का नाम “अग्नि” है। (विश प्रवेशने) इस धातु से “विश्व” शब्द सिद्ध होता है। “विशन्ति प्रविष्टानि सर्वाण्याकाशादीनि भूतानि यस्मिन् । यो वाऽऽकाशादिषु सर्वेषु भूतेषु प्रविष्टः स विश्व ईश्वरः” जिस में आकाशादि सब भूत प्रवेश कर रहे हैं अथवा जो इन में व्याप्त होके प्रविष्ट हो रहा है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम विश्व है। इत्यादि नामों का ग्रहण अकारमात्र से होता है। “ज्योतिर्वै हिरण्यं, तेजो वै हिरण्यमित्यैतरेये शतपथे च ब्राह्मणे“ “यो हिरण्यानां सूर्यादीनां तेजसां गर्भ उत्पत्तिनिमित्तमधिकरणं स हिरण्यगर्भः“ जिसमें सूर्य्यादि तेज वाले लोक उत्पन्न होके जिसके आधार रहते हैं अथवा जो सूर्यादि तेजःस्वरूप पदार्थों का गर्भ नाम, (उत्पत्ति) और निवासस्थान है, इससे उस परमेश्वर का नाम “हिरण्यगर्भ“ है। इसमें यजुर्वेद के मन्त्र का प्रमाण है -

हि॒र॒ण्य॒ग॒र्भः सम॑वर्त्त॒ताग्रे॑ भू॒तस्य॑ जा॒तः पति॒रेक॑ आसीत् । स दा॑धार पृथि॒वीं द्यामु॒तेमां कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥ यजुः॰ अ॰ १३ । मं॰ ४ ॥

इत्यादि स्थलों में “हिरण्यगर्भ“ से परमेश्वर ही का ग्रहण होता है। (वा गतिगन्धनयोः) इस धातु से “वायु“ शब्द सिद्ध होता है। (गन्धनं हिसनम्) “यो वाति चराऽचरञ्जगद्धरति बलिनां बलिष्ठः स वायुः“ जो चराऽचर जगत् का धारण, जीवन और प्रलय करता और सब बलवानों से बलवान् है, इससे उस ईश्वर का नाम “वायु“ है। (तिज निशाने) इस धातु से “तेजः“ और इससे तद्धित करने से “तैजस“ शब्द सिद्ध होता है। जो आप स्वयंप्रकाश और सूर्य्यादि तेजस्वी लोकों का प्रकाश करने वाला है, इससे ईश्वर का नाम “तैजस“ है। इत्यादि नामार्थ उकारमात्र से ग्रहण होते हैं। (ईश ऐश्वर्ये) इस धातु से “ईश्वर“ शब्द सिद्ध होता है। “य ईष्टे सर्वैश्वर्यवान् वर्त्तते स ईश्वरः“ जिस का सत्य विचारशील ज्ञान और अनन्त ऐश्वर्य है, इससे उस परमात्मा का नाम “ईश्वर“ है।