पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२११

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समसमुलt: ११ सदा कूटस्थ निर्विकार रहता है इसलिये जो कोई कपिलाचार्य को अनीश्वरवादी कहां है जानो वही अनीश्वरवादी है कपिलाचा पर्थ नहीं है मीमांसा का धर्म तथा धर्मी से ईश्वर से वैशेषि और न्याय भी आरमशब्द से अनीश्वरवादी नहीं क्योंकि मझवादि धर्मयुक्त और ‘आम तति सर्वत्र व्यापोतीयाम।" जो सर्वत्र व्यापक और सबज्ञtiद धर्मयुक सब जीवों का प्रारमा है उसको मीमांसा वशषि क र न्याय ईश्वर मानते हैं । ( प्रश्न ) ईश्वर अवतार लेता है वा नहीं ? ( उ तर ) नहीं क्योंकि ‘‘अज एकान्' ‘सपर्यगाकुमकाय’, य यजुर्वेद के वचन हैं इत्यादि। वचनो से सिद्ध है कि परमेश्वर जन्म नहीं लता । ( मन ): - २५ यदा कदा हेिं धमस्य ग्लiभवत भारत ! । अभ्युत्थानधर्मस्य तदरम सृजयह , !! भ० गी• अ० ४ । श्लो० ७ ॥ श्रकिध्ण जी कहते हैं कि जब २ धर्म का लोप होता है तब तब मैं शरीर धा रण करता हूं। ( उत्तर ) यह बात वेद विरुद्ध होने से प्रमाण नहीं और ऐसा हो सकता है कि श्रीकृष्ण धसएम और धर्म की रक्षा कर ना चाहते थे कि में युग २ में जन्म लेके श्रेष्ठों की रक्षा और दुष्टों का नाश क तो कुछ दोष नहीं क्योंकि ‘प- पकाराय सतां विभूतय' परोपकार के लिये सत्पुरुषों का तन मन धन होता है। वथापि इससे श्रीकृष्ण ईश्वर नहीं हो सकते ।' प्रश्न ) जो ऐसा है तो संसार में में चौबीस ईश्वर के अवतार होते हैं और इनको अवतार क्यों मानते है १ ( उत्तर ) । वेदार्थ के न जानने, सम्प्रदायी लोगों के बहकाने और अपने आप आविद्वान् होने से भ्रम जाल में फंस के ऐमी २ प्रमाणिक बातें करते और गानते हैं ' ( मर ). जो ईश्वर अवतार न लेव तो कंस रावणादि दुष्टों का नाश कैसे सके ? (उत्तर प्रथम जो जन्मा है वह अवश्य मृत्यु को प्राप्त होता है जो ईश्वर अवarर शरीर धारण किये बिना जगत् की उत्तति, स्थिति, प्रलय करता है उस के सामने कंस ! रावणादि एक क।ि के सम।न भी नहीं बढ़ सर्वव्यापक होने से कंस रावणदि के शरीरों में भी परिपूर्ण हो रहा है जब चाहे उसी समय मच्छेदन कर लाश कर सकता है । भला इस अनन्त गुण में स्वभावयुक परमlमा को एक इद्र क जीव मारने के लिये जन्म मरणयुक कहनेवाले को मूर्लेपन से अन्य कुछ विशेष उपमा मिल सकती है ? और जो कोई कहे कि भभक्तजनों के उद्धार करने के - " - ०