पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२१३

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मुख्तकें । २ व १ -- द अनेक पुरुषों को मार के अपराधी नहीं होते वैसे परमेश्वर की प्रेरणा और अधीनता से काम सिद्ध हों तो जीव को पाप व पुण्य न लगे उस फल का भी प्रेरक परमेश्वर होवे नर स्वर्ग अर्थात् दु:ख सुख की प्राप्ति भी परमेश्वर को होवें। जैसे किसी मनुष्य ने शछ विशेष के किसी को सारडाला तो वही मारनेवाला पकड़ा जाता है और यही दण्ड पता है शन नहीं । वैसे ही पराधीन जीब पाप पुण्य का भागी नहीं हो सकता । इसलिये अपने सामथ्र्यानुकूल कर्म करने में जब स्वतन्त्र परन्तु - जब वह पाप कर चुकता है तब ईश्वर की व्यवस्था से पराधीन होकर पाप के फल

  • आगता है इसलिये कर्म करने में जीव स्वतन्त्र और पार्ष दु खखलए फल भोगने में

परतन्त्र होता है ' ( प्रश्न ) जो परमेश्वर जीव को न बनाता और समर्थ न देता V तो जीव कुछ भी न कर सकता इसलिये परमेश्वर की प्रेरणा ही से जीव कर्म करता है।( एयर ) जीव उत्पन्न कभी न हुआrअनादि है जैसे ईश्वर और जगत का उपादान कारण निमित्त है और जीव का शरीर तथा इन्द्रियों के गोल परमेश्वर - ज्ञ - - - के बनाय हुए हैं परन्तु व सब जrव के आधन दें जा काहू सन कमे वचन से पाप पुण्य करता वही भोगता है ईश्वर नह, जैसे किसी पहाड़ से लोहा है ने निकाला उस लोहे को किसी व्यापारी ने लिया उस की दुकान से लोहार ने ले तलवार बनाई उससे किसी सिपाही ने तलवार लेली फिर उससे किसी को मारडाला। अब यहां वह लोहे को उत्पन्न करने तलवार बनानेवाले और तलवार जस उसस लस को पकड़ कर राजा दण्ड नहीं देता किन्तु जिसने तलवार से सारा वही दृड पाता है । इसी शरादि की उसके का प्रकार उत्पत्ति करनेवाला परमेश्वर कमां का भोक्ता नहीं होता किन्तु जीव को भुगानेवाला होता है । जो परमेश्वर कर्म करता तो कोई जीव पवित्र और धार्मिक होने से पाप नही करता क्योकि परमेश्वर किसी जीव को पाप से प्रेरणा नहीं करता । इसलिये काम करने में करने जीव अपने स्वतन्त्र है, जैसे जीव अपने कामों के करने में स्वतन्त्र है वैसे ही परमेश्वर भी अपने कन के करने में स्वतन्त्र है1 जोव ईश्वर गुण मश्न) और का स्वरूपकर्म और स्वभाव कैसा? '(उत्तर) दोनों वेतनस्वरूप हैं, स्वभाव दोनों का पवित्र अविनाशी और बाकिसी अf ! की , स्थिति, प्रलघ, सत्र को नियम , है परन्तु परमेश्वर के स्टुष्टि उत्पत्तिरन जी। अरहर न्तitांत को पाप के फल देना आदि धर्मयुत कर्म हैं । जवि पुण्य के । है नन्या कर उनका पालन, शिल्प विद्यादि अच्छे बुरे कर्म । है 1 ईर मैं - अनन्त चल आदि गए और जांच के 2-6