पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२१५

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-- सत समुछा: 1 ० है शान और फल देने में ईश्वर स्वतन्त्र और जीव किश्चित् वर्तमान और कर्म करने में स्वतन्त्र है । ईश्वर का अनादि ज्ञान होने से जैसा कर्म का ज्ञान है वैसा ही दण्ड देने का भी ज्ञान अनादि है दोनों शाम उस के सदस्य हैं क्या कर्म ज्ञान सचा और दण्ड ज्ञान मिथ्या कभी हो सकता है ? इसलिये इसमें कोई दोष नहीं आया । ( प्रश्न ) जीब शरीर में भिन्न विभु है वा परिच्छिन्न ? ) परिच्छिन्न, जो ( उत्तर iवे होता तो जाप्रत्, स्वप्न, सुपुप्ति, सरणजन्म, संयोग, वियोग, जाना, आना कभी नहीं हो सकता इसलिये जीव का स्वरूप अल्पज्ञ, अल्प अर्थात् सूक्ष्म है और परमेश्वर अतीव सूक्ष्मारसूक्ष्मतर अनन्त सर्वज्ञ और सर्वव्यापक स्वरूप है इसलिये जीव और परमेश्वर का व्याप्य व्यापक सम्बन्ध है ( प्रश्न ) जिस जगह में एक वस्तु होती है उस जगह में दूसरी वस्तु नहीं रह सकती इसलिये जीब और ईश्वर का संयोग सम्बन्ध हो सकता है ब्याज्य व्यापक नहीं । ( उत्तर ) यडू नियम समान आाकारवाले पदार्थों में घट सकता है अससानाकृति में नहीं। जैसे लोहा ', अग्नि सूक्ष्म, होता है इस कारण से लोह में विद्युत् अग्नि व्यापक होकर एक ही अवकाश में दोनों रहे है वैसे जीव परमेश्वर से स्थूल और परमेश्वर जीव से सूक्ष्म होने से परमेश्वर व्यापक और जीव व्याप्य है 1 जैसे यह व्याप्य व्यापक सम्बन्ध जीष ईश्वर का है बैठे ही सेब्य सेवक, आघाधय, स्वामिथ्य, राज प्रजा और पिता पुत्र आदि भी सम्बन्ध हैं। ( प्रश्न ) जो पृथक् २ हैं। तों- प्रज्ञान ब्रह्मा ॥ १ ॥ यह ब्रह्मास्मि ॥ २ ॥ तपस्वस ॥ ३ ' अथमता ब्रह्म ॥ ४ ॥ वेदों के इन महावाक्यों का अर्थ क्या है ? ( उत्तर ) ये वेदवाक्य ही नही हैं ' किन्तु त्राह्माण प्रन्थों के बचन हैं और इनका नाम महावाक्य कहीं सत्याओं से नही लिखा अर्थात् ( अहम् ) मै ( ब्रह्मा ) अर्थात् ब्रहस्थ ( आरिम ) हूंयहां तात्स्थ्योषाधि है जैसे मचाक्रोशन्ति’' मचान पुकारते हैं । मचान जड़ है उनमें पुकारने का सामथ्र्य नहीं इसलिये अवस्थ मनुष्य पुकारते हैं इसी प्रकार यहां भी जानना। कोई कहे कि ब्रह्मास्थ सब पदार्थ हैं'पुनः जी को श्रद्घस्थ कहने में क्या विपेश है? इसका उत्तर यह कि सब पदार्थ त्रहस्थ है परन्तु जैसा साधन्वेंयुक्त निकटस्थ जीव | है वैसा अन्य नहीं और जब को वर्षा का ज्ञान और मृति में वह हा के साक्षा म्बन्ध में रहता है इसलिये जीव का ब्रह्मा के साथ तास्थ्य व तसचरितप॥धि अर्थात ।