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अथर्मसमुल्लासः ।।

शब्द से सुहृदादि मनुष्यों का ग्रहण होता है । (ञिमिदा स्नेहने) इस धातु से औणादिक “क्त्” प्रत्यय के होने से “मित्र” शब्द सिद्ध होता है। “मेद्यति, स्निह्यति स्निह्यते वा स मित्रः” जो सब से स्नेह करके और सब को प्रीति करने योग्य है, इस से उस परमेश्वर का नाम “मित्र” है। (वृञ् वरणे, वर ईप्सायाम्) इन धातुओं से उणादि “उनन्” प्रत्यय होने से “वरुण” शब्द सिद्ध होता है। “यः सर्वान् शिष्टान् मुमुक्षून्धर्मात्मनो वृणोत्यथवा यः शिष्टैर्मुमुक्षुभिर्धर्मात्मभिर्व्रियते वर्य्यते वा स वरुणः परमेश्वरः” जो आत्मयोगी, विद्वान्, मुक्ति की इच्छा करने वाले मुक्त और धर्मात्माओं का स्वीकारकर्त्ता, अथवा जो शिष्ट मुमुक्षु मुक्त और धर्मात्माओं से ग्रहण किया जाता है वह ईश्वर “वरुण” संज्ञक है। अथवा “वरुणो नाम वरः श्रेष्ठः” जिसलिए परमेश्वर सब से श्रेष्ठ है, इसीलिए उस का नाम “वरुण” है। (ऋ गतिप्रापणयोः) इस धातु से “यत्” प्रत्यय करने से “अर्य्य” शब्द सिद्ध होता है और “अर्य्य” पूर्वक (माङ् माने) इस धातु से “कनिन्” प्रत्यय होने से “अर्य्यमा” शब्द सिद्ध होता है। “योऽर्य्यान् स्वामिनो न्यायाधीशान् मिमीते मान्यान् करोति सोऽर्यमा” जो सत्य न्याय के करनेहारे मनुष्यों का मान्य और पाप तथा पुण्य करने वालों को पाप और पुण्य के फलों का यथावत् सत्य-सत्य नियमकर्ता है, इसी से उस परमेश्वर का नाम “अर्यमा” है। (इदि परमैश्वर्ये) इस धातु से “रन्” प्रत्यय करने से “इन्द्र” शब्द सिद्ध होता है। “य इन्दति परमैश्वर्यवान् भवति स इन्द्रः परमेश्वरः” जो अखिल ऐश्वर्ययुक्त है, इस से उस परमात्मा का नाम “इन्द्र” है। “बृहत्” शब्दपूर्वक (पा रक्षणे) इस धातु से “डति” प्रत्यय, बृहत् के तकार का लोप और सुडागम होने से “बृहस्पति” शब्द सिद्ध होता है। “यो बृहतामाकाशादीनां पतिः स्वामी पालयिता स बृहस्पतिः” जो बड़ों से भी बड़ा और बड़े आकाशादि ब्रह्माण्डों का स्वामी है, इस से उस परमेश्वर का नाम “बृहस्पति” है। (विष्लृ व्याप्तौ) इस धातु से “नु” प्रत्यय होकर “विष्णु” शब्द सिद्ध हुआ है। “वेवेष्टि व्याप्नोति चराऽचरं जगत् स विष्णुः” चर और अचररूप जगत् में व्यापक होने से परमात्मा का नाम “विष्णु” है। “उरुर्महान् क्रमः पराक्रमो यस्य स उरुक्रमः” अनन्त पराक्रमयुक्त होने से परमात्मा का नाम “उरुक्रम” है। जो परमात्मा (उरुक्रमः) महापराक्रमयुक्त (मित्रः) सब का सुहृत् अविरोधी है, वह (शम्) सुखकारक, वह (वरुणः) सर्वोत्तम (शम्) सुखस्वरूप, वह (अर्यमा) न्यायाधीश वह (शम्) सुखप्रचारक वह (इन्द्रः) जो सकल ऐश्वर्यवान्