पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१ लेयर्थकr, it 'waysone इसमा न्त जल भील आदि हैं जबतक आयवर्दी देश से’ शिक्षा नहीं गई,थी । ववत क मिश्र यूनीन और यूरोप देश आदिस्थ मनुष्यों में कुछ भी विद्या नहीं हुई थी । और इस लेण्ड के कुछधस आदि पुरुष अमेरिका में जबतक नहीं गये थे तब तक वे भी सहस्त्रों लाखों क्र.ड़ वषों से मूवं अथो विद्याद्दीन थे पुन: शिक्षा के पाने से | वद्वान् हो गये है, वैसे ही परमात्मा से सृष्टि की आदि में विद्या शिक्षा की प्राप्ति से उत्तरोत्तर काल में वि।न् होते आाये । स पूर्वेषापि गुरुः कालेनानवच्छेदा ॥ योग’ समाधिपादे सू॰ २६ ॥ जैसे वर्तमान समय में हम लोग अध्यापकों से पढ ही के विद्वान होते हैं वैसे परमेश्वर सृष्टि के आरम्भ में उत्पन्न हुए अग्नि आदि गुरु अर्थात् पढ़ने यों का हा क्योंकि जैसे जीव सुप्ति और प्रलय में ज्ञानरहित होजाते हैं जैसा परमेश्वर दें नहीं होता उसका ज्ञान निस्य है इसलिये यहूं निश्चित जानना चाहिये कि विना नि

मित्त से नैमित्तिक अर्थ सिद्ध कभी नहीं होता ।( प्रश्न ) बेद संस्कृतभाषा में प्रका

शित हुए और वे अनि आदि ऋषि लोग उस सस्कृतभाषा को नहीं जानते थे फिर वेदों का अर्थ उन्होंने कैसे जाना ? । उत्तर ) परमेश्वर ने जमाया और धरमा ) योगी महर्षि ले ग जब २ जिस २ के अर्थ की जनने कर के ध्यानावस्थित की इच्छा हो परमेश्वर के स्वरूप में गाधि स्थित हुए तब २ परमात्मा ने भीष्ट मना के अर्थ जनों जव बहस के आमाओं से बेचैंप्राश हु7 तब ऋषि मुनियों ने वह 3 मर्थ और ऋषि मुनियों के इतिह्मास पूर्वक प्रन्थ बनाये उनका नाम ब्राह्माण अशत ' नम्र जा वेद उसका व्याख्यान ग्रन्थ होने से त्रहण न!म हुआ आर: ऋपयो (मन्नदृष्टय:) :::'मन्त्रान्सपादुः निरु० १ , २० ॥ जिम २ न्त्रार्थ का दर्शील जिप्स वपि को हुआ और प्रथम ही जिसके पहले उस नन्त्र f अब किसी ने प्रकाशित नहीं किया था किया और दूसरों को पढ़ाया भी इसी आश्ववि उस २ मन्त्र के साथ ऋषि का नाम स्मरणीं लिखा आता है जो ोई नन्मयों को उन्नत वतलावे उत्नःो मिध्यावादी म के वे तो संन्ड है व न 51 के है । ( प्रश्न के केक दि ग्रन्था का तम है ? ( उत्तर ) अक्. - तन यMर सदिता जा - य का नहीं हूं न ) मन्त्राएदनवयद !