पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

-- - -


२१८ अत्याप्रकाशः ? . है । अ ) मनुष्य : जिससे यह विविध दृष्ट प्रकाशित हुई है जो धारण 1 और प्रलय करता है, जो इस जगत् का स्वासी जिस व्यपक में यह सब जगत् । } उत्पति स्थिति प्रलय को प्राप्त होता दें परमात्मा है उसको तू जान ोंर दूसरे । को स्मृष्टिकर्ता मत मान 7 १ ॥ ह सब जगत् सृष्टि के पहि ले अन्धकार से आवृत्त रात्रि रूप में जानने के अयोग्य आकाशरूप सब जगत् तथा तुच्छ अथोत् अनन्त पर- मेश्वर के सन्मुख एकदेशी आच्छादित था पश्चात् परमेश्वर ने अपने सामथ्र्य से कार ण रूप से कार्यरूप करदिया ॥ २ ॥ हे मनुष्यो !जो सब सूर्यादि तेज स्वी पदार्थों का आधार और जो यहू जगत् हुआ है और ह।गा उसका एक अद्वितीय पति परमारमा इस जगत् की उत्पत्ति के पूर्व विद्यमान था और जिसने पृथिवी से लेके सूर्युपर्यन्त जगत् को उत्पन्न किया है उस परमात्मा देव की प्रेम से भक्कि केय। करें ॥ ३ ॥ द मनुष्यो ! जो सब में पूर्ण पुरुष और जो नाश रहित कारण औौर जीव का स्वामी जो पृथिव्यदि जड़ ोर जीव स अतिरिक्त है वहीं पुरुष इस सब

। भूत, भविष्यत् अर बमनस्थ जगत् को बनानेवाल। है 41 ४ ॥ ि स परमात्मा की रचना से ये सब पृथियादि भूत उत्पन्न होते हैं जिससे जीव और जिसमें प्रलय को प्राप्त हiत है, वह ब्रह्मा है उसके जानने की इच्छा करो : ५ ॥ जन्माद्यय यतः ॥ शारीरिक सू० अ० १। पा० १। सू०२॥ ! जिससे इस जगत् का जन्म स्थिति और प्रलय होता है वही ब्रह्मा जानने योग्य है। ( प्रश्न ) यह जगत् पर सेश्वर से उत्पन्न हुआ है या अन्य से १ ( उतर ) निमिस कारण परमात्मा से उत्पन्न हुआ है परन्तु इसका पादन कारण प्रकृति है। प्रश्न ) क्या प्रकृति प, मेश्वर ने उत्पन्न नहीं की ? उत्तर ) नहीं वह अनादि हैं । T प्रश्न ) अनादि किसको कहते और कितने पदार्थ आदि हैं? उत्तर ) ईश्वर, जीब और जरात का कार ण ये तीन अनादि हैं ।(प्रश्न ) इसमें क्या प्रमाण हैं ? ( उत्तर ): - . ई सुपुणों सयु सखीय समन वृक्ष पॉरपस्वजात । तरन्ः पिंखे स्c। इत्यनैश्नन्नन्य अभि चाकशीति 7 १ ॥ न० म० १ 7 सू° १६४ । द० २० । शाश्वतीयः समयः ॥ २ ॥ यजुः० अ॰ ४० । में । ८ ॥