पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२२९

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सुलास: ! ( झा ) जो मेंही और जब दोनों ( सुपएi ) चेतनता और पालनादि गुणों से सदृश ( सयुजा ) व्याप्य व्यापक भाव से संयुक्क ( सखाया ) परस्पर मित्रतायुक्त सनातन अनादि है और ( समान T ही (क्ष ) अनादि मूलरूप कार ण 1 और शाखारूप कार्ययुक्त वृक्ष अर्थात् जो स्थूल होकर प्रलय से छिन्न भिन्न हो जाता है वह तीसरा अनादि पदार्थ इन तीनों के गुण कर्म और स्वभाव भी अनादि हैं इन जीव और त्रह्म में से एक जो जीव है वह इस तरूप से से सार में पापपुण्य रूप फों को ( स्वद्वत्ति ) अच्छे प्रकार भोगता है और दूसरा परमात्मा कमरों के फलों को ( आनन ) न भोगता हुआ चारों ओर अथत भीतर बार सर्वत्र प्रकाशमाम होरहा है जीव से ईश्वर, ईश्वर से जीब और दोनों से प्रकृति भिन्न स्वरूप तीनों अनादि हैं ।॥ १ ॥ ( शाश्वती ) अत् अनादि सनातन जवष प्रजा के लिये ' वेद द्वारा परमात्मा ने सब विद्यो का बोध किया है !॥ २ । अंजामेकां लोहितशुक्लकृष्णाँ बढ़ीः प्रजाः जमानां स्व. रूपाः । अज* ह्यक्री जुषमाणisतशत जहास्यनों अक्कभाग मजSन्यः 7 तारापन। आ० ४ । प० ५ ॥ प्रकृति जीव औौर पर मात्मा तीनों अज अर्थात् जिनका जन्म कभी नहीं होता । और न कभी ये जन्म लेते अर्थात् ये तीन सब जगत् के कारण हैं इनका कारण कोई नही इस अनद प्रकृति का भोग अनादि जांच करता हुआ । पता है और उस में परम रम न फंसता र न उस का भांग कर ता दें / ईश्वर जोब का लक्षण - ' श्वर विषय मे कx आये अब प्रश्नति का लक्षण लिखते हैं: _ ' सस्वरजस्तमस सास्यवस्था प्रातःशक्तेमहान् महतोह रोहडूरारात् प5चतन्मात्राण्यु भयमिन्द्रियं पचनन्म।ः ? स्थूलभूतानि पुरुष इति पच्चविंशतिणिः ॥ साब्यसू॰ ग्रय० १ से २ ६१ । ( सत्व ) शुद्ध ( रज ) मध्य ( तमः ) जाडथ अन् अ डत तीन बस्सु मि लकर जो एक संधात है उस का नाम प्रकृति है उससे मद्दत्त ए व बुद्धि उठ से । 1 अझझर उस से पाच तन्साना सूक्ष्म भूत और दश इन्द्रिय तथा ग्यारह मन