पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पांच तन्मानों से पृथियदेि पोच भूत ये चर्चीस और पचीसवां पुरुष अर्थात् । जीव और पर मेश्वर है इनमें से प्रकृति अधिकारी और महत्तव अटू ह्रार तथा पांच सूक्ष्म भूत प्रकृति का कार्य और इन्द्रियां मन तथा स्थूल भूतों का कारण है पुरुष न किसी की प्रकृति उपदान कारण और न किसी का कार्य है। प्रश्न : - सदेव सोश्री दमन भसीत् 1१ 1 छान्द०1०६। खं० २ ॥ ! असद्धा इन ासी॥ २॥ तैत्तिरीयोपनि० । ब्रह्मानन्दव॰ अ॰ ७1 आवेदनआसी। ३। बृह० आ० १ब्रा०४मं०१ | ब्रह्मा बा इद्धमत्र आासी ॥ ४ ॥ श० ११ । १ । ११ । १ । ई बतकतई ' यह जगत् ष्टि के पूर्व, सत् । १ : असत् । २ 1 आरसा। ३ । और त्रारूप था ! ४ 3 पश्चात् -- तटैक्षत बहुः स्यां प्रजापतेि । सोSकामयत बहुः स्यां प्रजायेयेति है॥ त्तियोपलि० ब्रह्मानन्दल्ली। अ० ६ । वही परमात्मा यपनी इच्छा से बहुरूप हो गया है ! सव बिई हम नैह जनरेत किन t के . यह भी उपनिषद् का बचन है-जो यह जत् है वहू सत्र निश्चय करके नह है उस ने दूसरे नाना प्रकार के पदार्थ कुछ भी नहीं किन्तु सब नहृदप हैं ( व 1 सर ) क् क्या इन वचनो का अनर्थ करते ह। { क्या t उन्नेदा में: एनेव खलु सोम्यान्नन शुनाप मूलमन्विच्छादिस्सांस्य शुद्भल तेजोमूल सन्विच्छ तेजस्सा सोम्य शुझे सन्मूलमन्विच्छ सन्मूलाः सोप्पेमः सवः प्रज: सदायननाः प्रतिष्ठाः । छान्ढ० ० ६५ प० ८ । मै० वे ! 3 हैमेत द3 : नन्द ५चिी काय ल "प मूल कारण दो त् जान कायं- स्प ११ - जो प दर्च ा से धूप कार ण जो नित्य प्रकृति है उस ! जड़ रा पो न, Tiत हीदरलए हुनि सत्र जगत् का मूल घर और स्थिति का स्थान है ?